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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
( ३६ )
॥ कलश॥
राग-धन्याश्री धवल वीस विहरमान गाया, परमाणंद सुख पाया । जीभ पवित्र पिण कीधी, मिश्री दूधस्यु पीधी ।१। वी० । समकित पणि थयु निरमल, पुण्य थयुमुझ परिघल। सुणस्यइ ते पणि तरस्यइ, कान पवित्र पण करस्यइ ।२। वी० । जंबू द्वीप मंइ च्यार, महा विदेह मझार । धातकी पुष्कर जेथि, आठ आठ अरिहंत तेथि ।३। वी० । मसकति नुफल मांगू, वीतराग नई पाए लागू। जिहां हुयइ जिणधर्म सार, तिहां देज्यो अवतार ।४। वी० । संवत सोलह सइंत्राणु, माह वदि नवमी वखाणु। अहमदावादि मझारि, श्री खरतरगच्छ सार वी० । श्री जिनसागर सूरि, प्रतपइ तेज पडूरि ।। हाथी साह नी हूँसे, तीथंकर स्तव्या वीसे ।६। वी० । श्री जिनचंद सरीस, सकलचंद तसु सीस। वेह तणइ सुपसायइ, समयसुन्दर गुण गायइ ७ वी० । इति श्रीविद्यमानविंशति तीर्थङ्कराणां गेयपदानि
(लिखितानि वा० हर्षकुशल-गणिना १७१७)
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