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________________ ( ३८ ) समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि कृपानाथ अनाथ पीहर भय भंजण भगवंत । पच्छिम महा विदेह विजया, नगरी मंइ विचरंत |२| महा०| उमादेवी मात अंगज, सकल गुण सोमंत । समयसुन्दर चरण तेरे, ग्रह ऊठी प्रणमंत | ३ | महा० | १९ देवयशा जिन गीतम् राग - मारुणी देवजसा जगि चिर जयउ तीथंकर, देव पुष्करद्वीप मकार रे । ती ० | भव्य जीव प्रतिबोधता ती ०, क्रमि क्रमि करइ विहार रे । ती ० | १ | सर्वभूति नामहं पिता ती०, गंगा मात मल्हार रे । ती ० । अरिहंत उगणीसमउ ती०, त्रिभुवन नउ आधार रे । ती ० |२| राजऋद्धि किसी वस्तु नी ती०, लालचि न करु' लिगार रे । ती ० । समयसुन्दर इम वीनवर ती०, आवागमण निवारि रे । ती ०|३| २० अजितवीर्य जिन गीतम् राग - मारुणी हां मेरी माई हो, अजित वीरज जिन वीसमउ, मोटुं मांड्य हो समवसरण मंडाण । सुरनर कोड़ि सेवा करइ, वीतराग नुं सुराइ सरस वखाण । श्र० १। व्रत थी लाख पूरव वडले, स्वामी तुम्हे तर पहुचिस्यउ निरवारण | पणि मुझ नइ संभारज्यो, तुम्ह सेती हो घणी जाण पिछाण । श्र० । तुमे नीरागी निसप्रीही, पण म्हारइ तो तुमे जीवन प्राण । समयसुन्दर कहइ शिव पामु, तां सीम तर करज्यो कल्याण । श्र० ३ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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