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________________ ( ३६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि तुझ समरण थकी मुझ, करम मूकइ केरउ । सहस किरण सरिज ऊग्यां, किम रहइ अंधेरउ हो। चं० ॥२॥ वीतराग देव विना हुं, देव न मार्नु अनेरउ । समयसुन्दर कहत मुझ, सरणउ एक तेरउ हो। चं० ॥३॥ १४ भुजंग जिन गीतम् राग-मारुणी भुजंग तीथंकर भेटियइ जी, त्रिभुवन केरउ ताय। ऊंची पांचसइ धनुषनी जी, कंचन वरणी काय ।भु०॥१॥ पुष्करार्ध मांहे परगड़उ जी, केवलज्ञानी कहाय । विहरमान विचरइ तिहांजी, चउरासी पूरव लाख आय। भु०॥२॥ समोसरण मांहे बइसि नई जी, देसणा द्यइ जिनराय। समयसुन्दर कहइ हूँ दूरि थीजी, प्रणमुप्रभु ना पाय।मु०॥३॥ १५ ईसर जिन गीतम .. राग-शुद्ध नट ईसर तीथंकर आगइ आवइ इंदा । ए आ । बत्रीस बद्ध नाटक करई, नव नव नव छंदा । ए आ। ई० ॥१॥ भवनपती देव व्यंतर, सरिज चंदा । ए आ। देवलोक ना इन्द्र आवइ, गावइ गुण वृन्दा । ए आ । ई० ॥२॥ भगवंत नी भगति जुगति, मुगति आणंदा । ए आ। समयसुन्दर · वंदण चाह, चरणारविन्दा । ए आ। ई० ३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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