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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
संसार समुद्र हुँ हेला हरिस्यु। श्री०॥१॥ पंच प्रमाद दूरि परिहरस्यु,
वीतराग देव ना वचन समरस्यु । श्री०॥२॥ अरिहंत अरिहंत नाम ऊचरिस्य,
समयसुन्दर कहइ हूँ इम तरिस्यु। श्री०॥३॥ १० विशाल जिन गीतम्
राग-सुघडउ (ढालः-मन जाणइ के सिरजणहार । एहनी जाति ) जिनजी वीनति सुणउ तुम्हे स्वामि विसाला,
तुम्हनइ सुण्या मंद दीनदयाला । जिलाश मिली न सकुँ आया समुद्र विचाला,
पणि तुझ नाम जपु जपमाला । जि०।। भगत ऊधरतां मत करउ टाला,
समयसुन्दर चा तुम्हे प्रतिपाला । जि०३। ११ वज्रधर जिन गौतम
राग-वसंत (ढाला-चंद्रप्रभ भेट्यउ मइ चंदवारि । एहनी जाति) वज्रधर तीर्थकर वांदु पाय, जिहां छइ तिहां जाय ।
पणि पूरव विदेह मइ ते कहाय । १।०।
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