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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
(२१) सामकोठ जिन गीतम्
__ राग-केदारा गउड़ी श्रीसामकोठ' तीथंकर देवा,
एकवीसमा हिव नाम कहेवा ।।श्री सा० । जउ जाणउ भव समुद्र तरेवा,
तउ वीतराग नइ वचने रहेवा ।२।श्री सा०। मुझ मन भागुभव मइभमेवा,
समयसुन्दर कहइ हुं करिस्युसेवा।३। श्री सा०। ( २२ ) अग्गिसेण जिन गीतम
___ राग-उड़ी अग्गिसेन तीथंकर उपदिसइ, एह संसार असार रे। पुण्य करउ रे तुम्हे प्राणिया, सफल करउ अवतार रे ।। आ०। हरिवंश सामवरण तरणू , संख लाछन छइ श्रीसार रे। चित्रकूट परबत ऊपर, पामीय शिव सख सार रे ।। आ० एह अरिहंत बावीसमउ, ऐरवरत क्षेत्र मझार रे। श्री नेमिनाथ ना सारिखउ, समयसुन्दर सुखकार रे ।३। प्रा०। ( २३ ) अग्गपुत्त जिन गीतम
राग-अधरस वीतराग वांदिस्युरे हिव हुँ, अग्गपुत्त अरिहंत। १ समकोटि । २ अतिसेन । ३ सरिखु सवि उपम । ४ हुउ पवित्र !
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