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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
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संसार समुद्र नइ पारि उतारइ, भय भंजण भगवंत | १ | वी० | नील वरण महिमा लिउ रे, सरप लांछग सोभंत । तीथंकर तेवीसमउ रे, नव हथ तनु निरखंत |२| वी० | पारसनाथ सरिखु सहुरे, एहना गुण छइ अनंत । समयसुन्दर कहइ जउ मिलइ इन्द्र, तर पिए कहि न सकंत । वी० |
( २४ ) वारिसेण जिन गीतम् राग - विहागड़ उ
वारसे तीर्थंकर ए चउवीसमउ,
सगली परि श्री महावीर समउ | १| वा० । खरउ वीतराग देव खंति खमउ,
भजउ भगवंत जिम भवन भमउ |२| वा० । चरणे चित्त लगाइ नमउ,
समयसुन्दर कहइ मुगति रमउ | ३| वा० । [ कलश ] राग - धन्याश्री
गाया गाया री ऐरवरत तीर्थंकर गाया ।
चवीसांना नाम चीतार्या समवायांग सूत्र मई पाया री । १ ऐ०। संवत सोल सताणुया वरसे, जिनसागर सुपसाया ।
हाथी साह त ग्रह कह, समयसुन्दर उवझाया रे । २ ऐ० । इति ऐरवरत क्षेत्र २४ तीर्थंकर गीतानि समाप्तानि ।
१ भाग । २ समयसुन्दर कहि ए चुवीसमु, श्री जिन वांदी भव मउ मुं । ( पाठान्तर भद्रमुनि, बुद्धिमुनि प्रेषित कापी से )
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