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समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
( १९ ) मरुदेव जिन गीतम्
राग - मालवी गउड़उ
गणीसम मरुदेव अरिहंत, मल्लिनाथ समान रे । नील चरणी तनु विराजइ, पुरुष रूप प्रधान रे | १ | ओ० | जिण दिन जिन चारित्र लीधु, ति दिन केवल ज्ञान रे । इन्द्र चउसठि मिली आवई, गायई गीत नई गान रे | २ | ओ० | तुझ विना हुं भम्य भूलउ, जिम पड़चउ मृग रान रे । समयसुन्दर कहर हिव हुं, धरिस तोरु ध्यान रे | ३ | ० |
( २० ) श्री सधिर जिन गीतम्
राग- श्रडाएउ कनड़उ
हिव हुँ चांदुरी वीसमउ सीधर ।
सामि नित ऊठी ल्युं नाम । हिव० | हुं करूं गुण ग्राम, केवल मुगति काम ।
प्रभु सो अभिराम ऐरवरत ठाम | हिव० | १ |
"
हरिवंश कुल भारण, उपनु केवल नाय |
सरस करइ वखाण, अमृत वाणि । जीवदया पालउ जाण, आप समा पर प्राण ।
( २७ )
१ स्वामि ।
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समयसुन्दर करइ, वचन प्रमाणि | वि० | २ |
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