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________________ समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ( १५ ) उपशान्त जिन गीतम् राग - मारुणी एकताली बार परखदा बइठो आागलि, आप आपण ऊलासह रे । पनरमउ श्री उपशांत तीर्थंकर, चउविधि धर्म प्रकाशइ रे । १ । धन जीव्यु रे २ धन जीव्यु आज म्हारु । रंज्या लोक कहह नरनारी, वचन सुख्य जे तुम्हारु रे । धन जीव्य रे २ ॥ पंइतालीस धनुष नी उंची, कंचन वरणी काया रे । सुन्दर रूप मनोहर मूरति, प्रणमइ सुरनर पाया रे | २६० । दस लाख बरस नुं ऊखु, सुप्रतिष्ठ गिरि (वर) सीधारे । समयसुन्दर कहह जीभ पवित्र थइ, जिन गुण ग्राम मई कीधा रे | ३ | करणो ॥ ( २५ ) ( १६ ) गुत्तिसेण जिन गीतम् राग --- मिश्र विहागड़ केदारऊ । एकताला सोलमा श्री गुत्तिसेण तीर्थंकर सांभलउ, श्री शांतिनाथ समान २ तुम्हे तर ते सांभलउ । पणि तिख तउ पारेवर शरणे राखियउ, तिम मुझ शरणे राखि मिलइ जिम भाखियउ । १ । चालिस धनुस शरीर सोवन मह-सोहतउ, उखु लाख वरस लांछन मृग मोहतउ | २ | अशुद्ध- १ अनंतसेन - गजसेन । २ सरिखु । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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