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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
मुगति जातां थकां मेलइ सत्थ । न०।१। पालउ जीव दया इह धरम पत्थ । भगवंत भाखइ सवत्थ सत्थ । न०।२। दुर्गति पड़तां आडउ दिइ हत्थ । समयसुन्दर कहइ प्रभु छइ समत्थ । न०।३। (१३) अस्संजल जिन गीतम्
राग-भूपाल अठतालउ तेरमउ अस्संजल तीर्थंकर, तिण देशन ए दीधी रे। छ जीवनी रक्षा तुम करजो, मुगति तणी वाट सीधीरे। ते॥१ वीतराग नी वाणी मीठी, प्रेम करी जिण दीधी रे। भव समुद्र मांहे ते भवियण, नहीं भमइ बात प्रसिद्धी रे।ते०।२। अाज्ञा सहित क्रिया सहु कीधी, दीक्षा पणि फलइ लीधी रे। समयसुन्दर कहइ मन शुद्ध करजो,धर्मथकीराज रिद्धीरे। ते०३। (१४) अनन्त जिन गीतम्
राग-वेलावल इकताला अहो मेरे जिन कुंकुण अोपमा कहूँ। काष्ठ कलप चिन्तामणि पाथर, कामगवी पशु दोष ग्रहुँ। अ०१॥ चन्द्र कलंकी समुद्र जल खारउ, सूरज ताप न सहूँ। जल दाता पणि श्याम वदन धन, मेरु कृपण तउ हुँ किम सदहुँ।२। कमल कोमल पणि नाल कंटक नित, संख कुटिलता बहुँ। समयसुन्दर कहइ अनंत तीर्थंकर, तुम मई दोषन लहुँ। अ०१३॥
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