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________________ कविवर के प्रगुरु अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि थे। कविवर के प्रसङ्ग से ही उनका संक्षिप्त परिचय पहले लिखा गया जो बढ़ते बढते ४५० पृष्ठों के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के रूप में परिणित हो गया। शताधिक ग्रन्थों के आधार से हमारा यह सर्वप्रथम विशिष्ट ग्रन्थ लिखा गया, उसका श्रेय भी कविवर को ही है । इस ग्रन्थ में विद्वत् शिष्य समुदाय नामक प्रकरण में कविवर का भी परिचय दिया गया था। उसी के साथ-साथ हमारा दूसरा वृहद् ग्रन्थ 'ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह' उपना प्रारम्भ हुआ, जिसमें कविवर के जीवन सम्बन्धी उपयुक्त तीनों गोत प्रकाशित किये गये। कविवर ने अपनी लघु रचनाओं का संग्रह स्वयं हो करना प्रारम्भ कर दिया था । क्योंकि वैसी रचनाओं की संख्या लगभग एक हजार के पास पहुंच चुकी होगी। अतः उनका व्यवस्थित संकलन किये बिना इन फुटकर और विखरी हुई रचनाओं का उपयोग और संरक्षण होना बहुत ही कठिन था। हमें उनके स्वय के हाथ के लिखे हुए कई संकलन प्राप्त हुए हैं और कई संकलनों की नकलें भी प्राप्त हुई हैं, जिनसे उन्होंने समय-समय पर अपनी लघु रचनाओं का किस प्रकार सङ्कलन किया था उसकी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है । उनके किये हुए कतिपय संकलनों का विवरण इस प्रकार है छत्तीस की संख्या तो उन्हें बहुत अधिक प्रिय प्रतीत होती है। क्षमा छत्तीसी, कर्मछत्तोसी, पुण्य छत्तीसी, सन्तोष छत्तीसी, आलोयण छत्तीसी आदि स्वतंत्र छत्तीसियां प्राप्त होने के साथ-साथ निम्नोक्त संकलित छत्तीसियां विशेष रूप से उल्लेखनीय है : १.ध्र पद छत्तीसी-इसमें छोटे छोटे छत्तीस पद जो रागरागनियों में है, उनका संकलन किया गया है। यद्यपि हमने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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