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________________ के सं० १९८६ के वैशाख जेठ अङ्क के पृ० ३५२ में प्रकाशित करवाये। साथ ही सत्यासिया दुष्काल वर्णन के अपूर्ण प्राप्त १६ पद्य देसाई ने जैनयुग सं० १६८५ के भादवे से कार्तिक अङ्क के पृ०६८ में छपवाये थे, उनके कुछ और पद्यं हमें प्राप्त हुए उन्हें भी अगमवाणी के साथ उसी वैशाख-जेठ के अङ्क में प्रकाशित करवा दिये । गीत द्वय को प्रकाशित करते हुये उस समय हमारे सम्बन्ध में देसाई जी ने लिखा था---"श्रा कवि श्री सम्बन्ध मां में भावनगर गुजराती साहित्य परिषद माटे एक निबन्ध लख्यो हतो अमे ते जैन साहित्य संशोधक ना खण्ड २ अङ्क ३।४ मां अने ते सुधारा वधारा सहित आनन्द काव्य महोदधि ना मौक्तिक ७ मां नी प्रस्तावना मां प्रकट थयो छे । ते कवि सम्बन्धी बीकानेर ना एक सज्जन श्रीयुत अगरचन्द भवरलाल नाहटा घणो प्रयास करता रह्या छे अने अप्रकट कृतिओ तेमणे मेलवी छ । अ शोधना परिणाम रूपे तेमना सम्बन्ध मां तेमना शिष्य हर्षनन्दने अने देवीदासे गोतो रच्या छे । .... ""श्रा बन्ने गीतो अमे नीचे उतारीने आपिये लीये अने तेनो उपगार श्रीयुत नाहटाजी ने छे कारण के तेमने पोताना संग्रह मां थी उतारी ने मोकल्या छे।" कविवर की जीवनी संबन्धी जो दो गीत उपयुक्त 'जैनयुग' में प्रकाशित करवाये गये, उनमें सं० १६७२ तक की घटनाओं का ही उल्लेख था। इसके बाद बाड़मेर के यतिवये नेमिचन्दजी से कविवर के प्रशिष्य राजसोमरचित 'महोपाध्याय समयसुन्दरजी गीतम्' प्राप्त हुआ, जिसमें उनके उपाध्यायपद, क्रियाउद्धार और अहमदाबाद में सं० १७०२ के चैत्र शु. १३ को स्वर्गवास होने का महत्वपूर्ण उल्लेख पाया गया। उसके बाद आज तक भी उनकी जीवनी सम्बन्धी कोई रचना और कहीं से प्राप्त नहीं हुई। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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