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________________ ( १० ) समय सुन्दरकृतिकुसमाञ्जलि अनंत जीवक तूं आधार, अनंत दुख कउ छेदणहार | हमकु ं स्वामी पार उतार, तूं तो कृपा निधान री | ३ | ० | समयसुन्दर तेरे जिणंद, प्रणमति चरणारविंद । गावति परमाणंद सारंग, राग तान मान री |४ | ० | धर्म जिन स्तवन राग - आसाउरी खगोचर तूं परमेसर, अजर अमर तूं अरिहंत जी । अकल अचल अकलंक अतुल बल, केवलज्ञान अनंतजी | १० | निराकार निरंजन निरुपम, ज्योतिरूप निरखंत जी । तेरा सरूप तु ही प्रभु जाणइ के जोगींद्र लहंत जी | २० | त्रिभुवन स्वामी तु अंतरजामी, भय भंजण भगवंत जी । समयसुन्दर क है तेरे धरम जिन, गुण मेरे हृदय वसंत जी । ३ अ० । Jain Educationa International शान्ति जिन स्तवन राग - मारुणी शांतिनाथ सुखहु तूं साहिब, सरणागत प्रतिपालो जी । ति हूँ तोरइ सराइ आयउ, स्वामी नयण निहालो जी । १ । दयाल राय तारउ जी, मुने आवागमण निवारउ जी । हूँ सेवक सामी तुमारोजी, तूं साहिब शांति हमारउ जी | २ | ५० | १ सुणयउ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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