SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय सुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि ( ११ ) पूरव भव राख्यो पारेवो, तिम मुझनै सरह राखि जी । दीनदयाल कृपा करि स्वामी, मुझ में दरसण दाखि जी । ३ । ५० | शांतिनाथ सोलमउ तीर्थंकर, सेवे सुरनर कोडि जी । पाय कमल प्रभु ना नित प्रणमइ, समयसुन्दर कर जोड़िजी ।४ ६० । कुन्थु जिन स्तवन राग भैरव • कुंथुनाथ कुं करू' प्रणाम, मन वंछित पूरवइ सुख काम | कुं० १। अंतरजामीण अभिराम अहिनिस समरू अरिहंत नाम | कु०२ | वीनति एक करू मोरा स्वाम, द्यो मोहि मुगति पुरी कौ धाम | कु०३ | किसके हरि हर किसके राम, समयसुन्दर करे जिनगुण ग्राम | कु०४ | 1 अर जिन स्तवन Jain Educationa International राग- नट्टनारायण अनाथ र गंजणं । य० । मोह महीपति मान विहंडण, भवियण के दुख भंजणं । अ० | १ | मालवकौसिक राग मधुर धुनि, सुरनर को मन रंजणं । सुन्दर रूप वदन चंद सोभित, लोचन निरंजन खंजनं । ०|२| हरि हर देव प्रमुख व्यासंगी, तूं सब सुख को मंजर । समयसुन्दर है देव' तू साचो, जो निराकार निरंजणं । श्र० ३ | १ खंडण । २ दोष । ३ भंजरण | ४ सो देव सांचउ । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy