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________________ समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि भाव भगति भगवंत भजोरी, चंचल इंद्री दमोरी । निवल जाप जपो जिनजी को, दुर्गति दुख गमोरी । २ ॥ भ० । मेरो मन मधुकर प्रभु के पदांबुज, हिनिस रंग रमोरी । समयसुन्दर कहै कोण कहुं जग, श्री जिनराज समो री । ३ । म० । विमल जिन स्तवन राग - मारुवरणी धन्यासिरी, जइतसिरी जिनजी कु देखि मेरउ मन झड़ री । तीन छत्र सिर ऊपर सोहड़, आप इन्द्र चामर बींझहरी । जि० |१| कणक सिंहास स्वामी वइसण, चैत्य वृक्ष शोभित कीजह री । भामंडल झलकै प्रभु पूठिं, देखत' मिथ्यामति खीजड़ री। जि०२ | दिव्य नाद सुर दुन्दुभि वाजई, पुष्प वृष्टि सुर विरचीज री । समयसुन्दर कहइ तेरे विमल जिन, प्रातीहारज पेखीजइ री। जि०३ | (६) अनन्त जिन स्तवन राग - सारंग Jain Educationa International अनंत तेरे गुण अनंत, तेज प्रताप तप अनंत । दरसण चारित अनंत, अनंत केवल ज्ञान री | ११ अ० । अनंत सकति कउ निवास, अनंत मुक्ति-सुख विलास । अनंत वीरज अनंत धीरज, अनंत सुकल ध्यान री | २| अ० । १. पेखत । २. छीजई री For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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