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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सकल सुरासुर वंदित पदकज, पुण्यलता धन पाथ । समयसुन्दर कहइ तेरी कृपा ते, होत मुगत सुख हाथ । ह०।३।
श्रेयांस जिन स्तवन
राग-ललित सरतरु सुन्दर श्री श्रेयांस । सुमनस श्रेणि सदा प्रभु शोभित, साधु साख की नीकी प्रशंस । सु०।१॥ मन वंछित सुख संपति पूरति,
आरति१ विधन करत विध्वंश । इंद चंद किन्नर अप्सर गण, गावत गुण वावतिर मुखि वंश । स० ॥२॥ खड़ग लंछन तप तेज अखंडित, अरिहंत तीन भुवन अवतंस । समयसन्दर कहै मेरो मन लीनौ, जिन चरणे जिम मानस हंस । सु० ॥३॥
वासुपूज्य जिन स्तवन
राग-गोड़ी केदारो भविका तुमे वासुपूज्य नमोरी। सुखदायक त्रिभुवन को नायक, तीर्थंकर बारमोरी।१।भ०। १ अरति । २ वावत सुख । ३ तुम्हें।
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