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समयमुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ( ७ ) स्वामी ए संसार असार जी, बहु दुख अनंत अपार जी।
मुझ आवागमन निवार जी ॥२॥ सा०॥ मुझ नै हिव तुंआधार जी, सरणागत नै संभार२ जी। तुझ सम कोइ नहीं संसार जी,समयसुन्दर नै सुखकार जी।३ सा०
सुविधि जिन स्तवन
राग-केदारू प्रभु तेरे गुण अनंत अपार । सहस रसना करत सुरगुरू, कहत न आवै पार प्र०।१। कोण अंबर गिणे तारा, मेरु गिर को भार । चरम सागर लहरि माला, करत कोण विचार प्र०॥२॥ भगति गुण लवलेश भाखु, सुविध जिन सुखकार । समयसुन्दर कहत हमकु, स्वामी तुम आधार प्र०।३।
शीतल जिन स्तवन
राग-केदारो हमारे हो साहिब शीतलनाथ । दीनदयाल भविक कुं मेले, मुगतपुरी को साथ । १०।१ । भव दुख भंजण स्वामी निरंजण, संकट कोट प्रमाथ। दृढरथ वंश विभूषण दिनमणि, संजम रमणी सनाथ। ह०१२। १ हुँ भम्यउ अनंती वारजी। २ आधार । ३ धरइ । ४ नावइ। ५तू। ६ भगत
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