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समयसुन्दरकृतिकुसमाञ्जलि
केसर चंदन मृगंमद भेली', भगति करूँ बहु भतियां ।
आद्र कुमार सज्जंभव की परि, बोध बीज प्रापतियां ॥२॥ मे०॥ पदम लांछन पदमप्रभु सामी, इतनी करूँ वीनतियां । समयसुन्दर कहै यो मेरे साहिब, सकल कुशल संपतियां ॥३॥ मे०॥ सुपार्श्व जिन स्तवन
राग-श्रीराग
वीतराग तोरा पाय सरणं । दीनदयाल सुपास जिणेसर, जोनी संकट दुख हरणं ।१।वी। कासी जनम मात पृथिवी सुत, तीन भुवन तिलकाभरणं। पर उपगारी तु परमेसर, भव समुद्र तारण तरणं ।। वी० । अष्ट करम मल पंक पयोधर, सेवक सुख संपति करणं। सुर-नर-किनर-कोट निसेवित, समयसुदर प्रणमति चरणं ।३वी.
चन्द्रप्रभ जिन स्तवन
राग-रामगिरि चंद्रानगरी तुम्ह अवतार जी, महसेन नरिंद मल्हार जो । भगवंत (तु) कृपा भंडार जी, इक वीनतड़ी अवधार जी।
चन्द्रप्रभस्वामी तार जी ॥१॥ स्वामी तारि जी। १ मेली। २ कोडि निषेवित। ३ चंद ।
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