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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
सुमति जिन स्तवन
राग-कांनडौ जिन जी तारो हो तारो। मेरा जिनराज जि०, विनती करूं कर जोड़ी। असरण सरण भगत साधारण, भवोदधि पार उतारो ॥ जि० ॥१॥ पर उपगारी परम करुणा पर', सेवक अपणो संभारो । भगत अनेक भवोदधि तारे, हम विरियां क्यं विचारो॥ जि० ॥२॥ मेघ मल्हार मात-मंगला सुत, वीनती ए अवधारो ।.. समयसुन्दर कहै सुमति जिणेसर, ... सेवक हुँ छु तुम्हारो । जि० ॥३॥ पद्मप्रभ जिन स्तवन
राग-वेलाउल मेरो मन मोह्यो मूरतियां। अति सुन्दर मुख की छबि पेखत,
विकसत होत मेरो छतियां ॥१॥ मे०॥ १ रस । २ हरषित
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