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समयमुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
समयसुन्दर कहइ तेरे अजित जिन.
गुण गावा मोकुरंगरली हो ॥३॥०॥
संभव जिन स्तवन
राग-काफी आ हे रूप सुन्दर सोहइ, सखि सम्भवनाथ । रूप० । गुण अनन्त मन मोहन मूरति, सुर नर के मन मोहइ ॥१॥ समोसरण सामी दयइ देशण, भविक जीव पडिबोहइ । केवलज्ञानी धर्म प्रकासइ, वयर विरोध विपोहइ ॥२।। स०॥ भवदधि पार उतार भगत कू, मुगति--पुरी आरोहइ । समयसुन्दर कहइ तीन भुवन मई, जिन सरिखउ नहि को हइ॥३॥
अभिनंदन जिन स्तवन __राग-मालवी गौड़ी
मेरे मन तूं अभिनन्दन देवा । सौंस करी मैं तेरे आगे, हरि हरि आन वहेवा ॥१॥ मे० ॥ मूरख कोण भखै नींब फल कुं, जो लहै वंछित मेवा। तूं भगवंत वस्यौ चित भीतर, ज्युगज के मन रेवा ।।२।। मे० ॥ तूं समरथ साहिब मैं सेव्यो, भव दुख भ्रांति हरेवा । समयसुन्दर मांगत अब इतनो, भव भव तुम्ह पाय सेवा ॥३ मे०॥
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