________________
महोपाध्याय समयसुन्दर
( ६१ )
पालणडइ पउदयउ रमइ म्हारउ बालुयड़उ, हींडोलइ अचिरा माय म्हारउ नान्हड़ियउ ॥१॥ पग घूधरड़ी घमघमइ म्हारउ बालुयड़ा, ठम ठम मेल्हइ पाय म्हारउ नान्हड़ियउ ।
(शान्तिनाथ हुलगमणा गीतम् ) मिट्ठा बे मेवा ते कॅ देवा, आउ इकट्ठ जेमण जेमां । लावां खूब चमेल ऋषभजी, आउ असाड़ो कोल ।२। कसबी चीरा पै बांधू तेरे, पहिरण चोला मोहन मेरे। कमर पिछेवड़ा लाल ऋषभजी, भाउ असाड़ा कोल ।३। काने केवटिया पैरेकड़िया, हाथे बंगा जवहर जड़िया। गल मोतियन की माल ऋषभजी, पाउ असाड़ा कोल।४। बांगा लाटू चकरी चंगी, अजब उस्तादां वहिकर रङ्गी। प्रांगण असाड़े खेल ऋषभजी, आउ असाड़ा कोल ।। नयण वे तेंडे कजल पावां, मन भावड़दां तिलक लगावां। रूढड़ा कैदे कोल ऋषभजी, आउ असाड़ा कोल ।६। श्रावो मेरे बेटा दूध पिलावां, वही बेड़ागोदी में सुख पावाँ । मन्न असाड़ा बोल ऋषभजी, आउ असाड़ा कोल ।।
(आदि स्तव )
भक्ति की तन्मयता में कवि जीवन का अनुराग पक्ष भी नहीं भूलता है। राजीमति के शब्दों में अनुराग को किस खूबी से प्रकट करता है। देखिये:
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org