________________
( १२ )
महोपाध्याय समय सुन्दर
दीप पतंग तह परि सुपियारा हो, एक पखो मारो नेह; नेम सुपियारा हो । हुं अत्यन्त तोरी रागिणी सुपियारा हो । तु कोइ द्य मुझ छेह; नेम सुपियारा हो । १ । संगत तेसुं कीजिये, सु० जल सरिखा हुवे जेह; ने• सु० आव आणि सहै, सु० दूध न दाभण देय; ने० सु० |२| ते गिरुया गुणवंतजी, सु० चंदन अगर कपूर ने० सु० । पीडंता परिमल करें, सु० आपड़ आणंद पूर; ने० सु०|३| मिलतां सुं मिलीयै सही, सु० जिम बापीयड़ो मेह; ने० सु० । पिउ पिउ शब्द सुखी करी, सु० श्राम मिले सुसनेह; ने०सु०|४| हुं सोना नी मूँदड़ी, सु० तु हिव हीरो होय; ने० सु० । सरिखइ सरिखइ जउ मिलइ,सु. तर ते सुंदर होय; ने० सु०|५| ( ने मिस्तत्र )
X
X
X
अनुराग के साथ साथ कवि राजीमती एव गौतम के शब्दों द्वारा जिस सरण से वियोग एवं विछोह का वर्णन करता है; वह सचमुच में साहित्य - निधि में एक अनमोल रत्न है । वियोग सम्बन्धित अनेकों गीत इस संग्रह में संग्रहीत हैं। पाठकों को अवलोकन कर रसास्वादन कर लेना चाहिये ।
कवि के हृदय में गुरु भक्ति और गच्छनायक के प्रति अटूट श्रद्धा थी । कवि ने दादा साहब श्री जिनदत्तसूरि और श्री जिनकुशलसूरि जी के बहुत से स्तवन बनाए हैं। श्री जिनकुशलसूरि जी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org