SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महोपाध्याय समयसुन्दर के नाम देता है, तो कहीं भगवान की स्तुति करता हुचा द्वयर्थ रूप ४४ रागों के नाम गिनाता है, तो कहीं एक ही स्तव १७ रागों : में बनाकर अपनी योग्यता प्रकट करता है, कहीं प्रत्येक पृथक् पृथक रागों में मुक्तक-काव्यों की रचना करता दिखाई दे रहा है। कवि ने अपने गीत और रासक साहित्य में प्रायः प्रत्येक राग-रागिनियों समावेश किया है। केवल राग-रागिनिये ही नहीं, सिन्ध, गुजरात, दूंढाड़, मारवाड़, मेड़ती, मालवी आदि देशों की प्रसिद्ध देशियों का समावेश कर अपने ग्रन्थों को कोष' का रूप प्रदान किया है। कवि के द्वारा गृहीत व निर्मापित देशियों की टेक पंक्तियों को आनन्दघन,कवि ऋषभदास, नयसुन्दर आदि अनेक परवर्ती कवियों ने उपयोग किया है। कवि की राग-रागिनियों की विशदता का आस्वादन करने के लिये देखिये, सीताराम चौपाई आदि रासक और तत्संबंधीय उल्लेख, जैन गुर्जर कविओ भाग १ । अनेक भाषा-ज्ञान प्राकृत, संस्कृत, सिन्धी, मारवाड़ी, राजस्थानी हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं पर कवि का अच्छा अधिकार था। कवि ने इन प्रत्येक भाषाओं में अपनी रचनायें की हैं । इन प्रत्येक भाषाओं के ज्ञान का महत्व भाषा-विज्ञान की दृष्टि से अत्यधिक है । भाषा पर अधिकार होने के पश्चात् रचना करना सरल है किन्तु दो भाषाओं में संयुक्त रूप में रचना करना अत्यन्त ही दुष्कर है। समसंस्कृत और प्राकृत भाषा में रचना करना वैदग्ध्य का सूचक है। कवि इन दोनों ही भाषाओं में समान रूप से अपनी पटुता दिखलाता है:| कु० पृ०६३। ० पृ० १४६। । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy