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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर ( ८३ ) सङ्गीत-शास्त्र विश्व को आकर्षित और अभिभूत करने का जितना सामर्थ्य संगीत-शास्त्र में है उतना सामर्थ्य और किसी साहित्य में नहीं। यही कारण है कि महाकवियों ने अपने काव्यग्रन्थों को 'छन्दस्यूत' किये हैं। पद्य में छन्नों का निर्माण संगीतशास्त्र की नैसर्गिकता और अनिर्वचनीयता प्रगट करता है । ताल, लय, गण, गति और और यति आदि संगीत के ही प्रमुख अंग हैं और ये ही छन्दज्ञों ने स्वीकार किये हैं। इसी कारण पद्य काव्य श्रव्य काव्य कहलाते हैं। भाषा-साहित्यकारों ने जनता को आकृष्ट करने के लिये गेय पद्धति अपनाई। प्रसिद्ध-प्रसिद्ध देशीयें, ख्याल, तर्जे आदि का प्रमुखता से अपनी रचनाओं में स्थान दिया । यह अनुभव सिद्ध है कि जनता ने अपने हृदय में जितना स्थान इन 'गेयात्मक' काव्यों को दिया, उतना और किसी को नहीं। संगीत में प्रमुख ६ राग और छत्तीस रागिनियाँ हैं और इन्हीं के भेदानुभेद, मिश्रभाव और प्रान्तीय आदि से सैंकड़ों नयी रागिनियों का निर्माण माना गया है। ___ कवि भी संगीत की प्रभावशालिता को पहिचान कर इसका आश्रय ग्रहण करता है और स्वछन्दता के साथ गंगा-प्रवाह के समान मुक्त रूप से गेय गीतों और काव्यों की रचना करता है। कवि का गेय साहित्य इतना प्रवाहशील और व्यापी है कि परवर्ती कवियों को यह कहना पड़ा कि "समयसुन्दर रा गीतड़ा, कुम्भे राणे रा भीतड़ा।" ___ कवि का वर्चस्व इस साहित्य पर भी फैला हुआ है। कहीं तो कवि गुरुवर्णन करता हुआ ६ राग और छत्तीस रागिणी के * कु. पृ. ३६५. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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