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महोपाध्याय समयसुन्दर
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माच्छमैवं निशितान् भृशं गुरो ! नवावतारं कमला- दिवोत्परम् | ३८ | "
दूसरी कृति, आचार्य मानतुङ्गसूरि प्रणीत भक्तामर स्तोत्र के चतुर्थ चरण पादपूर्ति रूप है। इसमें कवि ने आचार्य मानतुन के समान ही भगवान आदिनाथ को नायक मानकर स्तवना की है । यह कृति भी अत्यन्त ही प्रोज्ज्वल और सरस-माधुर्य संयुक्त है ।
कबि का स्तव के समय भावुक स्वरूप देखिये और साथ ही देखिये शब्द योजना:
"नमेन्द्रचन्द्र ! कृतभद्र ! जिनेन्द्रचन्द्र ! ज्ञानात्मदर्श-परिहृष्ट-विशिष्ट ! विश्व ! ।
त्वन्मूर्तिरर्तिहरणी तरणी मनोशे
( ७७ )
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् |१| "
कवि की उपमा सह उत्प्रेक्षा देखिये:"केशच्छटां स्फुटतरां दधदङ्गदेशे, श्रीतीर्थराजविबुधावलिसंश्रितस्त्वम् ।
मूर्धस्थ कृष्ण लतिका - सहितं च शृङ्गमुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ||३०|"
न्याय
कवि ने अपने प्रमुख शिष्य वादी हर्षनन्दन को नव्यन्याय का मौलिक एवं प्रमुख ग्रन्थ 'तत्त्वचिन्तामणि' का अध्ययन करवा
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