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________________ ( ७८ ) कर हर्षनन्दन को 'चिन्तामणिविशारदैः' बनाया था। इससे स्पष्ट है कि कवि का ' न्यायशास्त्र' के प्रति उत्कट प्रेम था। इतना ही नहीं, कवि ने हर्षनन्दन के प्रारम्भिक अध्ययन के लिये सं० १६५३ आषाढ शुक्ला १० को इलादुर्ग ( ईडर ) में 'मङ्गलवाद' की रचना भी की थी। होपाध्याय म समयसुन्दर 'मङ्गलवाद' का विषय है - केशव मिश्र ने 'तर्कभाषा' में शास्त्रीय परम्परा के अनुसार मङ्गलाचरण क्यों नहीं किया ? इसी प्रश्न को चर्चात्मक, अनुमान, फल- प्रभाव, कार्य-कारण, विघ्नसमाप्ति, शिष्टाचार-पद्धति से बढ़ाकर नैयायिक ढङ्ग से ही उत्तर दिया है और सिद्ध कर दिखाया है कि मिश्र ने हार्दिक मङ्गल किया है । Jain Educationa International 'मङ्गलवार' न्याय का विषय और उत्तर देने की नैयायिकों की प्रणाली होने पर भी कवि ने इसको अत्यन्त ही सरल बनाया है । इससे यह सिद्ध है कि कवि न्यायशास्त्र के भी प्रकाण्ड पण्डित थे I ज्योतिष जैन साधुओं के जीवन में दीक्षा और प्रतिष्ठा ऐसे संबंधित विषय हैं जिनका की अध्ययन अत्यावश्यक है। क्योंकि व्यावहारिक ज्योतिष से जैन - ज्योतिष में तनिक अन्तर सा है । अतः इनका ज्ञान होने पर ही इस सम्बन्ध के मुहूर्त आदि निकाले जा सकते हैं । इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर कवि ने अपने पौत्र- शिष्य जयकीर्ति को इस ज्योतिष शास्त्र का अच्छा विद्वान बनाया था । कवि स्वयं कहता है कि 'ज्योतिःशास्त्र - विचक्षण-वाचकजयकीर्ति' और भविष्य में परम्परा के श्रमण भी ज्ञान पूर्वक इस कार्य को सफलता से कर सकें, इसलिये 'नारचन्द्र, रत्नकोष, रत्नमाला, विवाह For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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