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कर हर्षनन्दन को 'चिन्तामणिविशारदैः' बनाया था। इससे स्पष्ट है कि कवि का ' न्यायशास्त्र' के प्रति उत्कट प्रेम था। इतना ही नहीं, कवि ने हर्षनन्दन के प्रारम्भिक अध्ययन के लिये सं० १६५३ आषाढ शुक्ला १० को इलादुर्ग ( ईडर ) में 'मङ्गलवाद' की रचना भी की थी।
होपाध्याय
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समयसुन्दर
'मङ्गलवाद' का विषय है - केशव मिश्र ने 'तर्कभाषा' में शास्त्रीय परम्परा के अनुसार मङ्गलाचरण क्यों नहीं किया ? इसी प्रश्न को चर्चात्मक, अनुमान, फल- प्रभाव, कार्य-कारण, विघ्नसमाप्ति, शिष्टाचार-पद्धति से बढ़ाकर नैयायिक ढङ्ग से ही उत्तर दिया है और सिद्ध कर दिखाया है कि मिश्र ने हार्दिक मङ्गल किया है ।
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'मङ्गलवार' न्याय का विषय और उत्तर देने की नैयायिकों की प्रणाली होने पर भी कवि ने इसको अत्यन्त ही सरल बनाया है । इससे यह सिद्ध है कि कवि न्यायशास्त्र के भी प्रकाण्ड पण्डित थे
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ज्योतिष
जैन साधुओं के जीवन में दीक्षा और प्रतिष्ठा ऐसे संबंधित विषय हैं जिनका की अध्ययन अत्यावश्यक है। क्योंकि व्यावहारिक ज्योतिष से जैन - ज्योतिष में तनिक अन्तर सा है । अतः इनका ज्ञान होने पर ही इस सम्बन्ध के मुहूर्त आदि निकाले जा सकते हैं । इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर कवि ने अपने पौत्र- शिष्य जयकीर्ति को इस ज्योतिष शास्त्र का अच्छा विद्वान बनाया था । कवि स्वयं कहता है कि 'ज्योतिःशास्त्र - विचक्षण-वाचकजयकीर्ति' और भविष्य में परम्परा के श्रमण भी ज्ञान पूर्वक इस कार्य को सफलता से कर सकें, इसलिये 'नारचन्द्र, रत्नकोष, रत्नमाला, विवाह
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