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________________ आचारांग व्याख्याओं की कथाएँ / 45 तब राजा उस प्रमादी शिष्य के सामने आचार्य को पूछता है- 'क्या' तुम्हारे संघ में कोई प्रमादी शिष्य है ? मुझे कहो, मैं उसे ठीक कर दूँगा । आचार्य ने कहा- 'अभी कोई शिष्य प्रमादी नहीं है। जब होगा तो तुम्हें कहूँगा।' राजा के चले जाने पर उस प्रमादी शिष्य ने आचार्य को कहा- 'आप राजा को मत कहना। मैं आज से प्रमाद छोड़ दूँगा और आपकी आज्ञा में चलूँगा । यदि कभी प्रमाद करूँ तो आप मुझे उस राजा को दे देना। अब मैं आपकी शरण में हूँ।' तब से वह प्रमादी शिष्य सजा के आतंक के भय से आचरणशील और सीधा हो गया । 12 बाद में राजा ने भी अविज्ञा के लिए उससे क्षमा मांगी। इस प्रकार द्रव्य आतंकदर्शी अहित, प्रमाद, हिंसा आदि कार्यों से अपने को सर्वथा अलग कर लेता है, जैसे उस धर्मघोष को प्रमादी शिष्य ने किया। 13 के भव आतंकदर्शी तो नरक आदि जन्मों में प्रिय के वियोग आदि मानसिक एवं शारीरिक दुःखों अनुभव से हिंसा आदि कार्यों से विरत हो जाता है। वस्तुतः आतंक, अहित और आत्मदर्शन द्वारा हिंया से विरत हुआ जा सकता है। आचारांग के टीकाकार ने ठीक ही कहा हैकट्ठेण कंटएण व पाए विद्धस्स वेयणट्टस्स । जइ होइ अनिव्वाणी सव्वत्थ जिएसु तं जाण । राग-द्वेषवश की गयी हिंसा सम्बधी कथाएं : प्रमाद रागद्वेषात्मक होता है। यह मेरी माता है। इसने मुझपर उपकार किया है। अतः इसे भूख प्यास आदि की पीड़ा न हो इसलिए व्यक्ति कृषि, वाणिज्य, नौकरी आदि तथा हिंसात्मक साधनों से भी धन कमाता है। माता आदि को कष्ट पहुँचाने वाले के प्रति द्वेष उत्पन्न होता है। द्वेष भाव से हिंसात्मक क्रियाएँ की जाती हैं। 14 यथा -शी. पृ. 151 7. (क) परशुराम कथा :- परशुराम ने अपनी मां रेणुका, उसके साथ अवैध सम्बन्ध करने वाले राजा अनंतवीर्य एवं अपने सौतेले भाई को मार डाला था । इसके प्रतिशोध में अनंतवीर्य के पुत्र कृत्यवीर्य ने परशुराम के पिता जमदग्नि को मार डाला। तब परशुराम ने कृत्यवीर्य को मार डाला और उन्हें मार कर पृथ्वी को क्षत्रियों से सात बार खाली कर दिया। 15 बाद में कृत्यवीर्य के पुत्र सुभूम ने परशुराम को मार दिया और 21 बार पृथ्वी को ब्राह्मणों से खाली कर दिया । 16 यह कथा प्रचीन जैन साहित्य में प्रचलित रही है। इसे प्रचलित रामकथा का जैन रूपान्तरण भी कहा जा सकता है। 8. (ख) घाणक्य द्वारा नन्दकुल का नाश :- संसारी प्राणी अपनी बहिन के प्रति राग होने से अथवा पत्नी के प्रति आसक्ति से भी दुःख का अनुभव करता है। जैसे चाणक्य अपनी बहिन और बहिनोई की अवज्ञा से और अपनी पत्नी की प्रेरणा से नन्द राजा के पास धन पाने की आशा से वहां गया । किन्तु वहां अपमानित होने पर उसने क्रोध से चन्द्रगुप्त की सहायता से नन्दकुल का ही नाश कर दिया। 17 जैन साहित्य में चाणक्य का प्रसंग अंकित किया गया है। 9. (ग) जरासन्ध द्वारा बदला :- जरासन्ध राजगृह का राजा था और कंस का श्वसुर था। कंस को नवां प्रतिशत्रु कहा गया है, जिसकी मृत्यु कृष्ण के द्वारा हुई थी । जरासन्ध ने अपने दामाद कंस की हत्या इसलिये करवा दी थी कि वह उसकी पुत्री को दारुण दुख न दे। 18 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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