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________________ चतुर्थ प्राकृत कथाओं के भेद-प्रभेद प्राक्त साहित्य विभिन्न विधाओं में उपलब्ध है। उनमें कथा की विधा अधिक समृद्ध हुई है। प्राकृत कथा साहित्य का उद्भव यद्यपि आगम साहित्य में ही हो चुका था, किन्तु उसका विकास व्याख्या साहित्य और स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थों में हुआ है। ज्ञाताधर्मकथा. उवासगदशाओं. विपाकसूत्र. उत्तराध्ययनसूत्र आदि आगम ग्रन्थों की कथाएँ संक्षिप्त कथाएँ हैं, जबकि उत्तराध्ययनटीका, आवश्यकचूर्णी, बृहम्कल्पभाष्य आदि की कथाएँ विस्तार लिए हुए हैं। ईसा की प्रथम शताब्दी से ही स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थ लिखे जाने लगे थे। सगराइच्चकहा, कुवलयमालाकहा, रयणसेहरोनिबकहा आदि प्राकृतकथा-ग्रन्थों की परम्परा लम्बी है। प्राकृत के इस विशाल कथा साहित्य में प्राकृत कथाओं के कई रूप प्राप्त होते हैं, जो प्राकृत कथा के भेद-प्रभेदों की जानकारी के लिए आधारभूत हैं। स्वयं कुछ प्राकृत कथाकारों ने प्राकृत कथा के विभिन्न रूपों की चर्चा की है। उसी आधार पर प्राकृत कथाओं के भेद-प्रभेदों को संक्षेप में ज्ञात किया जा सकता है। सामान्य कथा : आचार्य हरिभद्रसूरि ने दशवैकालिकसूत्र पर जो वत्ति लिखी है उसमें उन्होंने सामान्य कथा के तीन रूपों की चर्चा की है:- (1) अकथा, (2) कथा, (3) विकथा। इनका स्वरूप बतलाते हुए वे कहते हैं कि अज्ञानी मिथ्यादृष्टि के द्वारा कही गयी संसार में परिभ्रमण में सहायक होने वाली कथा अकथा है। कथा वह कहलाती है जिसका निरुपण तप, संयम, दान. शील आदि लोककल्याण के कार्यों हेतु अथवा विचार-शोधन के लिए किया जाता है। विद्वान् ऐसी कथा को सत्कथा भी कहते हैं। प्रमाद, कषाय, रागद्वेष, स्त्री, भोजन, चोर आदि से संबंधित एवं समाज और राष्ट्र को विकृत करने वाली कथा विकथा कहलाती हैं। अकथा और विकथा भौतिकता और कलुषित विचारों की ओर ले जाने वाली कथाएँ हैं। अत: सत्कथा का निरुपण करना और स्वाध्याय करना ही श्रेयस्कर है। विषयगत कथाएँ : प्राकृत कथा साहित्य के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि कथा के भेद-प्रमंदो के सम्बन्ध में प्राचीन आचार्यों के जो विचार प्राप्त होते हैं उनमें कथाओं का वर्गीकरण विषय, पात्र, भाषा और शैली के आधार पर किया गया है। अतः इसी क्रम से कथाओं के भेदों की जानकारी प्राप्त करना इसी क्रम उपयोगी होगा। हरिभद्रसूरि ने विषय की दृष्टि से कथाओं के भेद का निरुपण दो स्थानों पर किया है। समराइच्चकहा में वे कहते हैं कि कथाएँ चार प्रकार की होती हैं। जैसे(1) अर्थकथा, (2; कामकथा. (3) धर्मकथा (4) संकीर्णकथा। यही बात उन्हान दशवैकालिकवृत्ति में भी कही है कि कथा चार प्रकार की है- अर्थकथा, कामकथा. धर्मकथा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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