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आगम कथा साहित्य/5
सूत्रकृतांग में शिशुपाल, द्वैपायन, पाराशर आदि के प्रासंगिक उल्लेख है। किन्तु आद्रककुमार की कथा विस्तृत है। इस कथा का परवर्तीकाल में पर्याप्त विकास हुआ है। इसी तरह पेढालपुत्र, उदक और गौतम स्वामी का संवाद भी मनोरंजक है। इस तरह यह ग्रन्थ ऐतिहासिक एवं दार्शनिक कथातत्वों की दृष्टि से महत्त्व का है।21 स्थानांगसूत्रस्थानांगसूत्र में तत्वों एवं लोकस्थिति आदि का वर्णन संख्या की प्रधानता से किया गया है। अतः इसमें कथातत्व कम है। महापद्म भावी तीर्थकर की कथा इस ग्रन्थ में उपलब्ध है।22 श्रमणी पोटिट्ला की कथा इसमें आयी है।23 तथा सात निन्हवों का वर्णन भी इस ग्रन्थ में है। इस सामग्री से तथा कुछ उपमाओं और प्रतीकों से कथाबीजों की खोज इसमें की जा सकती है। समवायांगसूत्रसमवायांगसूत्र में दार्शनिक तत्वों का निस्पण संख्या के क्रम से किया गया है।24 जैसे- लोक एक है, दण्ड और बन्ध दो है। शल्य तीन है। चार कषाय हैं। पाँच क्रियाएँ, व्रत, समिति आदि हैं। इसके साथ ही तीर्थंकरों, गणधर, चक्रवर्ती, वासुदेव, आदि धार्मिक महापुरुषों की जीवनियों की कुछ घटनाएँ इस ग्रन्थ में वर्णित हैं। अतः इस ग्रन्थ में कथा-तत्वों की अपेक्षा चरित-तत्वों का समावेश अधिक है। व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवतीसूत्र)भगवतीसूत्र विशालकाय ग्रन्थ है। इसमें सैंकड़ों विषय हैं। धर्म, दर्शन के अतिरिक्त आधुनिक विज्ञान से सम्बन्धित सामग्री भी इसमें पर्याप्त है। इस ग्रन्थ में महावीर के साथ वार्ता करने वाले कई पुरुषों और स्त्रियों की कथाएँ हैं। शिवराज ऋषि, जामालि, उदयनराजा, जयन्ती श्रमणोपासिका, शंख, सोमिल, सुदर्शन आदि कई व्यक्तियों के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ इस ग्रन्थ में वर्णित हैं। "सूत्र 2.1 में आयी हुई कात्यायन स्कन्द की कथा सुन्दर है। इसकी घटनाओं में रसमत्ता है। और ये घटनाएँ कथातत्व का सृजन करने में पूर्ण सक्षम हैं।"25 सामान्य व्यक्तियों की कथाओं के लिए तथा महावीर के साथ उनके सम्पर्क की जानकारी के लिए भगवतीसूत्र में अच्छी सामग्री है। गोशालक के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्रामाणिक जानकारी इस ग्रन्थ में है।26 महामन्त्र नवकार का सर्वप्रथम उल्लेख इसी ग्रन्थ में मिलता है।27 वस्तुतः यह ग्रन्थ जिज्ञासाओं और उनके समाधानों का ग्रन्थ है। इसे तत्कालीन संस्कृति का विश्वकोश कहा जा सकता है।28 ज्ञाताधर्मकथाआगम ग्रन्थों में कथातत्व के अध्ययन की दृष्टि से ज्ञाताधर्मकथा में पर्याप्त सामग्री है। इसमें विभिन्न दृष्टान्त एवं धर्मकथाएँ हैं, जिनके माध्यम से जैन तत्व-दर्शन को सहज रूप में जन-मानस तक पहुँचाया गया है। ज्ञाताधर्मकथा आगमिक कथाओं का प्रतिनिधि ग्रन्थ है।29 इसमें कथाओं की विविधता और प्रौढ़ता है। मेघकुमार (प्र.अ.) थावच्चापुत्र (5), मल्ली (8) तथा द्रोपदी (16) की कथाएं ऐतिहासिक वातावरण प्रस्तुत करती हैं। प्रतिबुद्ध राजा, अहनक व्यापारी, राजा रुकमी, स्वर्णकार की कथा, चित्रकार कथा, चौक्खा परिव्रजिका आदि कथाएं मल्ली की कथा की अवान्तर कथाएं हैं। मूल कथा के साथ अवान्तर कथा की परम्परा की जानकारी के लिए ज्ञाताधर्मकथा आधारभूत स्रोत है। ये कथाएं कल्पनाप्रधान एवं सोद्देश्य हैं। इसी तरह जिनपाल एवं जिनरक्षित की कथा (9), तेतलीपुत्र (14), सुषमा की कथा (18),
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