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त्रयोदश मधुबिन्दु अभिप्राय का विकास
कथा-कहानी का स्थान भारतीय साहित्य में सबसे पुरातन है। मनोविनोद और ज्ञानवर्द्धन का जितना सुगम और उपयुक्त साधन कथा है, उतनी साहित्य की अन्य कोई विधा नहीं। कथा-साहित्य की इसी सार्वजनीन लोकप्रियता के कारण प्रत्येक भारतीय-चिंतक व युगप्रवर्तक ने धार्मिक-आचार, आध्यात्मिक तत्वचिन्तन तथा नीति और कर्तव्य का उपदेश कथाओं के माध्यम से दिया है। प्राकृत कथा-साहित्य इस अर्थ में पर्याप्त समृद्ध है। जीवन-दर्शन की सूक्षम अभिव्यक्ति इन कथाओं के माध्ययम से हुई है।
प्राकृत कथाओं में ऐसे अनेक अभिप्राय प्रयुक्त हुए हैं, जिन्होंने किसी चिरन्तन सत्य के उद्घाटक होने के कारण विश्वजनीन प्रसिद्धि प्राप्त की है। मधुबिन्दु अभिप्राय उनमें से एक है। इस अभिप्राय विशेष के अध्ययन के पूर्व स्वयं अभिप्राय पर विचार कर लेना आवश्यक है क्योंकि भारतीय कथा-साहित्य के अध्येतों द्वारा मौलिक रूप से इस क्षेत्र में चिन्तन बहुत कम हुआ है।
अभिप्राय-अध्ययन : कथाओं में निहित अभिप्रायों का संग्रह कर उनके उत्स का पता लगाना ही कथ्य को दृदयंगम करने का सही रास्ता है। अभिप्राय कथा का अपरिवर्तनीय अग है। कथा की शैली, कथानक-संगठन, भाषण आदि में क्रमशः देशगत व कालगत परिवर्तन होते रहते है। किन्तु सुदीर्घ परम्परा के बाद भी कथा का अभिप्राय (motif) नहीं बदलता। मानव-मन की अज्ञात और अप्राप्त के प्रति तीव्र जिज्ञासा ने ही अनेक अभिप्रायों का निर्माण किया है, जिनका सम्बन्ध धर्म, दर्शन और नैतिक मूल्यों से जुड़ा हुआ है और जो कथा के सांस्कृतिक आधार के प्रतिरूप होते हैं। अतः अभिप्राय-अध्ययन द्वारा न केवल कथाओं के हार्द तक पहुंचा जा सकता है, अपितु मानवीय मूलवृत्तियों की विकसित-परम्परा का भी ज्ञान होता है तथा विश्व की कथाओं की एकता का दर्शन। ___ अभिप्राय (motif ) शब्द का प्रयोग पाश्चात्य विद्वानों ने अनेक अर्थों में किया है। टेम्पल, पेंजर, वेरियर एलविन आदि विद्वानों ने कथा की किसी घटना विशेष या परिणाम को अभिप्राय कहा है। इसी का अनुकरण अधिकांश भारतीय विद्वानों द्वारा हुआ है। किन्तु घटना और परिणाम या विचार अभिप्राय नहीं कहे जा सकते। क्योंकि परिस्थिति अनुसार एक कथा में अनेक घटनायें, विचार और परिणाम हो सकते हैं, किन्तु परम्परा में सभी का स्थिर रहना जरूरी नहीं है और न ही सभी कथा के अन्तरंग के संवाहक होते हैं। अत: मात्र घटनाओं और विचारो की पुनरावृत्ति को अभिप्राय मानने की अपेक्षा उनके जनक को अभिप्राय मानना अधिक युक्ति-संगत होगा। इस प्रकार मानव-जीवन की जो सुख और दुःख से संयुक्त शाश्वत कथा है, उसके संवाहक भाव को अभिप्राय कहा जा सकता है। भले हम उसे किसी नाम से पुकारें। इस सन्दर्भ
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