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७. अगडदत्तचरियं*
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अत्थि जए सुपसिद्ध संखउरं पुरवरं गुणसमिद्ध ं । तम्मि य राया जणजणियतोसओ सुन्दरो नाम ॥१॥ तस्स कुलरुवसरिसा समग्ग जणजणिय लोयणाणन्दा | अन्तेउरस्स पढमा सुलसा नामेण वरभज्जा ॥२॥ ती कुच्छिपसूओ पुत्तो नामेण अगडदत्तो त्ति । अणुदियह सो पवरं वड्ढन्तो जोव्वणं सोय केरिसो
पत्तो ॥ ३॥
धम्मत्थदयारहिओ गुरुवयणविवज्जिओ पररमणिरमणकामो निस्संको
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अलियवाई । माणसोण्डीरो ॥४॥
मज्जं पिएइ जूयं रमइ पिसियं महुं च भक्खेइ । assयवेसाविन्दपरिगओ भमइ पुरमज्झे ॥५॥ अन्नम्म दिने रन्नो पुरवरलोएण वइयरो सिट्ठो । जह कुमरेण नराहिव नयरे असमंजसं विहियं ॥ ६ ॥ सुणिऊण पउरवयणं राया गुरुकोवजायरत्तच्छो । फुडभिउडिभासुरसिरो एवं भणिउ समादत्तो ||७|| रे रे भणह कुमारं "सिग्घं चिय वज्जिऊण मह विसयं । अन्नत्थ कुणसुगम मा भणसु य जं न कहियं ति" ॥८॥ नाऊण वइयरं सो कुमारो चइऊण नियपुरं रम्मं । खग्गसहाओ चलिओ गुरुमाणपवड्ढियामरिसो ॥९॥ लंघित्ता गिरिसरिकाणणाइँ पुरगोट्ठगामवन्दाई | नियनयराओ दूरे पत्तो वाणारसि नयर ॥१०॥ तिथ चच्चरमाईसु असहाओ भमइ नयरमज्झमि | चित्ते अमरिसजुत्तो करि व्व जूहाउ परिभट्ठो ॥ ११ ॥ हिण्डन्तेणं च तथा पुरीए मग्गेसु रायतणएन । बहुतरुणनरसमेओ एक्को किल जाणओ दिट्ठो ॥१२॥
* पाठ - सम्पादन : डा० राजाराम जैन, अगडदत्तचरियं, आरा ।
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