SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ प्राकृत भारती इयरह एसो जेट्ठो पिउविरहे सामिओ इहं होही। अहवा अद्धग्गाही पुत्तय ! इह संसओ नत्थि ।।५९।। अन्नदियहम्मि सत्थो चलिओ सव्वो वि सो जणसमेओ। पत्तो कमेण गंतुं तारे उहिस्स रुदस्स ॥६०।। उवही वि सत्थपुरओ उट्ठइ इव तंगतरलकल्लोलो। अहवा गिहपत्ताणं कुणंति गरुया वि उट्ठाणं ॥६१।। भरिऊण पवहणाई सव्वे वि हु निययभडजायस्स । चलिया मंगलपुव्व सुवन्नदीवस्स मग्गेण ॥६२॥ गच्छंताण कमेण तुट्टे सव्वाण इंधणाईए। मग्गन्नुएहिं सहसा नीया मयणायदीवम्मि ॥६३।। तत्थ य उत्तरिऊणं गेण्हंति फलाइय इ सव्वे वि । वच्चति य सव्वं पि हु पेच्छंति य पेच्छणिज्जाई ॥६४॥ सव्वे वि तहिं पत्ता भविस्सदत्तेण वज्जिया जाव।। ताव य चालइ पोए वेएणं बंधुदत्तो वि ॥६५।। अह सत्थिएहिं भणियं भविस्सदत्ता न दीसए एत्थ । भोत्तण कीस चलिया ? सत्थस्स न जुज्जए एयं ॥६६॥ अह भणइ बंधुदत्तो एकस्स कए न नासिमो सव्वे ।। न्हाया तडम्मि तुम्हे गुण दोसा पुण महं एत्थ ।।६७।। नाऊण तस्स चित्त सव्वे वि हु संठिया मणे दुहिया । पत्तो य तप्पएसं भविस्सदत्तो विचितेइ ॥६८।। कि मं मोत्तण गया ? किं वा सो चेव न ह इमो देसो ?। अहवा दीसइ चिण्हं तम्हा लोभेण मुक्को हं ॥६९॥ इय चिंतिऊण तत्तो सो पुण वलिऊण हिंडए दीवं । कयलीहरम्मि रम्मे रयणी बोलेइ ठाऊणं ॥७०॥ जाए पहायसमए भमडिता गिरिवरस्स कडयम्मि। पेच्छइ विवराभिमुहं पुराणसोवाणपंतीयं ।।७१।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy