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प्राकृत भाषा एव साहित्य
(ख) आगमिक व्याख्या साहित्य :
प्राकृत आगमों पर जो व्याख्या साहित्य लिखा गया है, उसमें कई छोटी-छोटी कथाएँ आयी हैं। अतः प्राकृत कथा साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से इस व्याख्या साहित्य का भी विशेष महत्त्व है। आचारांगचूर्णि, सूत्रकृतांगणि और निशीथचूर्णि में प्राकृत गद्य में लौकिक कथाएं प्राप्त होती है। उत्तराध्ययनचूर्णि में बुद्धि-चमत्कार की भी कथाएँ हैं। आवश्यकणि कथाओं का भण्डार है। इसमें लौकिक एवं उपदेशात्मक दोनों प्रकार की कथाएं मिलती हैं। इन चूर्णियों के लेखक जिनदासगणि महत्तर बहत बड़े दार्शनिक एवं कुशल कथाकार थे। लोक-जीवन को उन्होंने इन कथाओं के द्वारा व्यक्त किया है। __आचार्य हरिभद्र ने दशवैकालिकवृत्ति और उपदेशपद में कई प्रकार की कथाएँ प्रस्तुत की हैं। अतः ये दोनों ग्रन्थ भी प्राकृत कथा के आधार ग्रन्थ माने जा सकते हैं। टीका साहित्य में नेमिचन्द्रसूरि का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने उत्तराध्ययन-सुखबोधाटीका में कई महत्वपूर्ण प्राकृत कथाएं प्रस्तुत की हैं। इस व्याख्या साहित्य की कथाओं का डॉ. जगदीश चन्द्र जैन ने जो अध्ययन प्रस्तुत किया है, उसमें इनके स्वरूप एवं महत्त्व पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। (ग) स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थ :
तरंगवतीकहा-प्राकृत में प्राचीन समय से स्वतन्त्र रूप से भी कथाग्रन्थ लिखे गये हैं। पादलिप्तसूरि प्रथम कथाकार हैं, जिन्होंने प्राकृत में तरंगवइकहा नामक बड़ा कथा-ग्रन्थ लिखा है। किन्तु दुर्भाग्य से आज वह उपलब्ध नहीं है। उसका संक्षिप्त सार तरंगलोला के नाम से नेमिचन्द्रगणि ने प्रस्तुत किया है। इसको सम्पादित कर डॉ० एच० सी० भायाणी ने प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में तरंगवती के आदर्श प्रेम एवं त्याग की कथा वर्णित है।
वसुदेवहिण्डी-यह ग्रन्थ विश्व कथा-साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। क्योंकि वसुदेवहिण्डी की कई कथाएँ विश्व में प्रचलित हुई हैं। संघदासगणि ने इस ग्रन्थ में वसुदेव के भ्रमण-वृत्तान्त का वर्णन किया है। प्रसंगवश अनेक अवान्तरकथाएँ भी इसमें आयी हैं। इस ग्रन्थ का दूसरा खण्ड धर्मदासगणि के द्वारा रचित माना जाता है, उसका नाम मध्यमखण्ड है। वसुदेवहिण्डी में रामकथा एवं कृष्णकथा के भी कई प्रसंग हैं तथा कुछ लौकिक कथाएँ हैं । इस कारण इस ग्रन्थ में चरित, कथा और पुराण
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