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________________ २२२ प्राकृत भारती भैरवानन्द-(अभी) चन्द्रमा को धरती पर उतार देता हूँ। सूर्य के रथ को आकाश के बीच में खड़ा कर देता हूँ। यक्ष, सुर और सिद्धों की कन्याओं को यहाँ ला देता हूँ। ऐसे कुछ भी नहीं है जो मेरे लिए साध्य न हो । तो बताइए क्या किया जाए ? (२४) राजा-वयस्य, कहो कोई अपूर्व महिला-रत्न तुमने देखा है ? विदूषक-इसी दक्षिणापथ में “वच्छोम' नामक नगर है। वहीं मैंने एक कन्यारत्न देखा । उसे यहाँ लाया जाये । भैरवानन्द-अभी आया। राजा-पूर्णचन्द्र को धरती पर लाया जाए। (भैरवानन्द ध्यान का नाट्य करते हैं, परदा हटाकर नायिका प्रवेश करती है। सभी देखते हैं) राजा-अरे, आश्चर्य, महान् आश्चर्य । चंकि आँखों के आँजन धले हैं और उनमें लाल-लाल रेखाएँ उभर आयीं हैं, कई लटें उसके मुख से चिपकी हैं और अपने केशकलाप को उसने हाथों में संभाल रक्खा है और इनसे (अभी भी) जल की बूंदे टपक रहीं है, इसने एक ही वस्त्र पहन रक्खा है, इससे ऐसा जान पड़ता है कि स्नान-क्रीड़ा में लगी इस अद्भुत सुन्दरी को हठात् इस योगीश्वर के द्वारा यहाँ लाया गया है । (२५) और भी एक पाणिपंकज से यह अपने पीन पयोधरों से खिसकते हुए आँचल को संभाल रही है और दूसरे से लीलापूर्वक चलने के कारण श्रोणी पर से खिसके हुए कटिवस्त्र को। इस रूप में भला यह किसके हृदयपट पर चित्रित नहीं हो जाएगी। (२६) स्नान करने के क्रम में इसने अपने सभी आभरण उतार दिए हैं। और जल क्रीड़ा में इसके कुंकुमादि विलेपन भी धुल गए हैं। फिर भी गीले वस्त्र से झांक-झांक कर इसके धृष्ट स्तन घोषणा कर रहे हैं कि यह (युवती) सौन्दर्य का सर्वस्व है। (२७) नायिका-(सबों को देखकर, स्वगत) इनकी गम्भीर और मधुर आकृति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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