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________________ ११. अशोक के अभिलेख* प्रथम अभिलेख १. यह धर्मलिपि देवताओं के प्रिय २. प्रियदर्शी राजा द्वारा लिखायी गयी । यहाँ ३. कोई जीव मारकर हवन न किया जाय । ४. और न समाज किया जाय। क्योंकि बहुत दोष । ५. समाज में देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा देखते हैं। ६. ऐसे भी एक प्रकार के समाज हैं, जो देवानां७. प्रिय-प्रियदर्शी राजा के मन में साधु हैं। पहले ८. देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा की पाकशाला में प्रतिदिन कई ९. लाख प्राणी सूप के लिए मारे जाते थे। १०. परन्तु आज जब यह धर्मलिपि लिखायी गयी, तीन ही प्राणी ११. सूप के लिए मारे जाते हैं-दो मोर और एक मग । वह १२. मृग भी निश्चित रूप से) नहीं। ये भी तीन प्राणी पीछे (बाद में) नहीं मारे जायेंगे। द्वितीय अभिलेख १. देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा के राज्य में सर्वत्र २. इसी प्रकार प्रत्यन्तों में, चोल, पाण्डय, सत्यपुत्र, केरलपुत्र, ताम्रपर्णी, ३. तक यवनराज अन्तियोक, उस अन्तियोक के समीप जो४. राजा हैं. सर्वत्र देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा की दो चिकित्साएँ व्यवस्थित हैं५. मनुष्य-चिकित्सा और पशु-चिकित्सा । मनुष्योपयोगी और पशुपयोगी जो औषधियाँ ६. जहाँ-जहाँ नहीं है (वे) सर्वत्र लायी गयीं और रोपी गयों, ७. और मूल और फल जहाँ-जहाँ नहीं हैं (वे) सर्वत्र लाये गये हैं और रोपे गये हैं। ८. पशु और मनुष्यों के उपयोग के लिए पंथों में कुए खोदे गये हैं और वृक्ष रोपे गये हैं। के अनुवादक-डॉ० प्रेम सुमन जैन, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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