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________________ श्री कूर्मापुत्र चरित १८३ ८३. तब देवी के द्वारा वह चिन्तामणि रत्न वणिक को दे दिया गया। वह सन्तुष्ट हुआ अपने घर को गमन करने के लिए वाहन पर चढ़ा। ८४. जहाज की छत पर बैठा हुआ वह वणिक जैसे ही सागर के मध्य में आया वैसे ही पूर्व दिशा में पूर्णिमासी का चाँद उदित हुआ। ८५. तब उस चाँद को देखकर वह वणिक अपने मन में विचार करता है कि चिन्तामणि का तेज अधिक है या इस चाँद का ? ८६. ऐसा सोचकर वह अपनी हथेली पर चिंतामणि रत्न को लेकर अपनी दृष्टि से चन्द्र और रत्न को बार-बार देखता है। ८७. इस तरह देखते हुए उस दुर्भाग्यशाली के हाथ से वह अत्यन्त अमूल्य रत्न समुद्र में गिर गया। ८८. समुद्र के बीच में पड़ा हुआ वह सम्पूर्ण रत्नों में सर्वश्रेष्ठ मणि अनेक अनेक बार उसके खोजे जाने पर उसे किसी तरह भी प्राप्त होगा क्या? ८९. उसी तरह सैकड़ों भव में भ्रमण करने से किसी तरह प्राप्त हुआ मनुष्य जन्म भी प्रमाद के वशीभूत जीव क्षण मात्र में खो देता है। ९०. वे धन्य हैं जिन्होंने पुण्य किया और जो अपने हृदय में जिनधर्म को धारण करते हैं । लोक में उनका ही मनुष्यत्व सफल एवं प्रशंसनीय है।' ९१. इस उपदेश को सुनकर उस यक्षिणी ने सम्यक्त्व को स्वीकार किया। और कुमार ने गुरु के पास में गुरूतर मुनिधर्म (चरित्र ) को ग्रहण किया। ९२. कुमार ने स्थविरों के चरणों में चौदह पर्वो का अध्ययन किया । दुष्कर तपश्चरण से युक्त वह माता-पिता के साथ विचरण करने लगता है। ९३. कुमार, माता व पिता वे तीनों ही चरित्र का पालन कर महाशुक्र देवलोक के मन्दिर विमान में उत्पन्न हुए। ९४. वह यक्षिणी भी वहाँ से चत होकर वैशाली के भ्रमर राजा की सत्यशील को धारण करने वाली कमला नाम की भार्या हुई। ९५. भ्रमर राजा और कमलादेवी दोनों ही जिन धर्म ग्रहण कर अन्त में शुभ अध्यवसाय से वहाँ ही (महाशुक्र स्वर्ग में) उत्तम देव हुए। ९६. श्रेष्ठ नय/न्याय को प्राप्त मन्दिर वाला समस्त लोक में धन-धान्य से समृद्ध एवं सुप्रसिद्ध राजगृह नामक श्रेष्ठ नगर है। ९७. वहाँ शत्रु रूपी हाथी के विनाश में सिंह की तरह महेन्द्रसिंह राजा __ था। जिसके नाम मात्र से युद्ध भूमि में करोड़ों योद्धा भग्न हो जाते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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