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________________ मुनिचन्द कथानक १७१ व त्रुटियों का लालची है तो किस प्रकार भोली नायिका और अधिक गर्व को धारण करती है ?" मेरे द्वारा कहा गया- - 'क्योंकि वह उसको चाहने वाला था ।' [१२] तब मैं उठकर अपने भवन को चला गया । उचित कार्यों को किया । इस संसार का एकमात्र प्रदीप सूर्य के अस्त होने पर मित्रों को भेज दिया गया | रात्रि एक प्रहर व्यतीत हुई मैंने तलवार ली । मनुष्य की आँखों को न दिखाई पड़ने वाले अदृश्य रूप को प्राप्त कर कनकमती के भवन को गया । भवन के ऊपरी भाग पर वह स्थित थी और पास में दो दासियाँ थीं, बाहर पहरेदार थे। दूसरे कमरे में एक स्थान पर मैं ठहर गया । तभी कनकमती ने एक स्त्री को कहा - ' है सखी, कितनी हो गई ?' दो प्रहर से कुछ कम ।' रात [१३] तब उसने नहाने का कपड़ा माँगा । अंग प्रक्षालन किया और सिल्क के कपड़े से पोंछा । शृंगार किया, विशेष आभूषण धारण किए, सिल्क का जोड़ा पहना, विमान तैयार किया और तीनों जने उस पर चढ़े। मैं भी अदृश्य रूप में (विमान के ) एक कोने पर चढ़ गया । मन की तरह शीघ्र उत्तर दिशा की ओर वह विमान गया । तालाब के किनारे और नंदनवन के बीच के स्थान पर वह उतरा । वहाँ पर अशोक वीथिका के नीचे मैंने एक विद्याधर को देखा और कनकमती विमान से निकलकर उसके समीप में गई तथा उसे प्रणाम किया। उसने कहा‘बैठो ।' थोड़ी देर में अन्य तीन स्त्रियाँ भी वहाँ आ गई । वे भी प्रणाम करके उसकी अनुमति से बैठ गई । थोड़ी देर में अन्य विद्याधर भी वहाँ आ गये तथा आकर और पूर्वोत्तर दिशा भगवान् ऋषभ स्वामी के चैत्य घर में जाकर पहले उपलेपन से उनका मंजन किया | वह विद्याधर भी वहाँ गया । वे चारों जनीं भी वहाँ जाकर किसी ने वीणा और किसी दूसरी ने बाँसुरी ग्रहण की, कायली प्रधान गीत प्रारम्भ किया । इस प्रकार से संसार के गुरु का अभिषेक किया गया। गोशीर्ष चन्दन का लेप किया गया। फूल चढ़ाये गये, धूप जलाई. गई, नृत्य प्रारम्भ हुआ । विद्याधर ने कहा - ' आज किसकी बारी है ?" तब कनकमती उठी, नाचना प्रारम्भ किया, नाचती हुई उसकी घुंघरू धागे सहित टूट कर गिर गई । वह घुंघरू मेरे द्वारा ग्रहण कर ली. गई और छिपा ली गई । घमण्डी विद्याधरों द्वारा प्रयत्नपूर्वक खोजने पर भी वह उन्हें प्राप्त नहीं हुई । नृत्य समाप्त हो गया । उस नृत्य के विसर्जित होने से सभी विद्याधर अपने-अपने स्थानों को चले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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