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________________ प्राकृत भारतो वह राजा अपनी पत्नी का वृतान्त सुनकर विषाद से भर गया, फिर भी धैर्य धारण कर उसने उसके साथ नगर में प्रवेश किया। [३६] एक दिन राजा ने देवी से पूछा-"प्रिये, तुम्हारा निरन्तर का सह चर वह बगीचा अब यहाँ क्यों नहीं दिखाई देता?" उसने भी उत्तर दिया-"आर्यपुत्र, बगीचा पीछे कुएं पर पानी पी रहा है । स्मरण करने पर वह आ जाएगा।" राजा भी जब-जब उसके सर्वांग शरीर का अवलोकन करता, तभी-तभी सन्देह रूपी पिशाच से वह आक्रान्त हो जाता कि क्या यह “वही" है अथवा अन्य कोई दूसरी ? अन्य किसी दिन राजा ने पुनः रानी से कहा-"तुम उस मनोरम बाग को ले आओ।" उसने भी उत्तर दिया--"प्रियतम, उसे बाद में ले आऊँगी।" इससे राजा के मन में विशेष रूप से आशंका जागती गई। [३७] इधर असली आरामशोभा ने (समय पाकर एक दिन) उस नागदेव से प्रार्थना की-"तात, पुत्र-विरह मुझे बहुत पीड़ित कर रहा है । अतः कृपा कीजिए और ऐसा उपाय करिये जिससे मैं अपने वत्स को देख, सकं । तब उस देव ने कहा-यदि ऐसा ही है, तब मेरे प्रभाव से (उसके पास) चली जाया करो, किन्तु पुत्र को देखकर शीघ्र ही वापस भी आ जाया करो।" आरामशोभा ने "तथास्तु" कहकर उसका कथन स्वीकार कर लिया। इसके बाद देव ने पुनः कहा-“यदि वहाँ जाने पर तुम सूर्योदय-पर्यन्त ठहरोगी, तब उसके बाद से मेरा दर्शन तुम्हें कभी भी न हो सकेगा।" इस कथन का संकेत यह है कि "उस समय अपने केशपाश से मरकर गिरा हुआ एक सर्प देखोगी। उसके बाद तुम्हें मेरा कभी भी दर्शन न हो सकेगा।" यह सुनकर आरामशोभा ने कहा-"ऐसा ही होगा।" जैसे भी हो, एक बार अपने तनय को देख तो सर्केगी।" इसके बाद देव ने उसे वहाँ भेज दिया। उसके प्रभाव से वहाँ निमेषमात्र में ही पाटिलपुत्र पहुंच गई। राजा का निवास स्थान खोलकर वह भीतर प्रविष्ट हुई। वह राजभवन कैसा था गाथा १६-स्वर्ण-वर्ण की कान्ति से संदीप्त, जहाँ मणिमय दीपक प्रज्वलित थे, जो सुपक्व-फलों से प्रपूरित था तथा जो कपूर की सुगन्धि से महक रहा था। गाथा १७.--जहाँ विकसित पुष्प-समूह बिखर रहे थे, अगर एवं धूप की सुगन्धि विस्तृत थी, जो सुन्दर रूप से अलंकृत था और पाँच प्रकार की सुगन्धियाँ जहाँ व्याप्त थीं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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