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आरामशोभा-कथा
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राजभवन सुवासित हो उठा। बहुत बड़े मोदकों को देखकर वह राजा भी सन्तुष्ट हुआ तथा उन्हें खाकर उसने बड़ी प्रशंसा की और बोला" मैंने तो राजा होकर भी ऐसे विशिष्ट स्वाद वाले मोदकों का कभी भी आस्वादन नहीं किया । इनमें से एक-एक लड्डू अपनी बहिनों ( अन्य रानियों ) को भी भेजो ।" आरामशोभा ने राजा के आदेशानुसार वैसा ही किया । इससे राजदरबार में आरामशोभा की माँ की इस प्रकार प्रशंसा होने लगी- "अरे वह तो बड़ी ही चतुर है, जिसने देवों के लिए भी अत्यन्त दुर्लभ लड्डू बनाकर भेजे हैं ।" इस प्रकार अपनी माँ की प्रशंसा सुनकर आरामशोभा बहुत भी सन्तुष्ट हुई । [२६] उसी समय अग्निशर्मा ने राजा से विनय की - "देव, मेरी पुत्री को नैहर भेज दीजिये, जिससे कि वह थोड़े समय के लिए भी माता से मिलकर तुम्हारे पास वापिस आ सके ।” राजा ने उसे ले जाने से मना कर दिया । उसने स्पष्ट कहा कि -- “ रानियाँ तो कभी सूर्य का भी दर्शन नहीं कर सकतीं, फिर नैहर जाने की तो बात की क्या ?” राजा का उत्तर सुनकर वह भट्ट अपने घर लौट गया और समस्त वृत्तान्त अपनी पत्नी को कह सुनाया। यह सुन वह पापिनी वज्राहत की तरह होकर विचार करने लगी । - “ धिक्कार है, इक्षु-पुष्प के समान ही मेरा उद्यम निष्फल हो गया । प्रतीत होता है कि वह विष निश्चय ही प्राणलेवा न था ।"
[२७] कुछ दिनों के पश्चात् पुनः हालाहल मिश्रित फैनी ( नाम की मिठाई) से भरी हुई एक करण्डिका देकर पूर्ववत् उसने अपने पति को आरामशोभा के यहाँ भेजा । पूर्ववत् ही उस नागकुमार देव ने भी हलाहल मिश्रित उन फैनियों का अपहरण कर लिया । पूर्ववत् ही उसकी प्रशंसा भी हुई। इसी प्रकार पुनः तीसरी बार भी "तालपुट" नामक तत्काल प्राणनाशक विष से मिश्रित मिठाई से भरा हुआ एक कलश देकर उस दुष्टा ने ब्राह्मण से कहा "गर्भवती होने के कारण इस बार कन्या को अवश्य ही लेते आना, जिससे उसका प्रथम प्रसव यहीं पर हो । यदि राजा किसी भी प्रकार भजने को तैयार न हो तब वहीं उसे अपना ब्राह्मण तेज दिखा देना ।
[२८] ब्राह्मणी के वचन स्वीकार करके वह भट्ट चला और चलते-चलते उसी वट-वृक्ष के नीचे सो गया । नागकुमार देव ने भी पूर्ववत् ही तालपुट विष से मिश्रित मिठाई का अपहरण कर लिया। तत्पश्चात् पूर्ववत्
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