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________________ १५६ प्राकृत भास्ती है, इस कलश में क्या लिये हुए है ?' उसने अपने विशिष्ट ज्ञान का प्रयोग कर उस पापिनी ब्राह्मणी के मन का समस्त वृत्तान्त जान लिया और मन में सोचने लगा--"अहो, सौतेली माता के चित की दुष्टता तो देखो, जिसने सरल स्वभाव वाली उस आरामशोभा के साथ ऐसा अनर्थकारी कार्य किया है। किन्तु मेरे रहते हुए उसका कुछ भी अनिष्ट नहीं हो सकता।" ऐसा विचार कर उसने विषमिश्रित लड्डुओं का अपहरण कर उसके स्थान पर कलश को अमृत लड्डुओं से भर दिया। [२३] तत्पश्चात् प्रातःकाल होते ही जब उस ब्राह्मण की नींद खुली तब वह उठकर राजदरबार में पहुँचा । उसने प्रतिहारी से निवेदन किया और राजा के समीप पहुँचकर उसे आशीर्वाद दिया तथा उपहार स्वरूप लड्डुओं से भरा हुआ वह कलश राजा के बाँयी ओर स्थित आरामशोभा को समर्पित कर दिया । उसने राजा से भी कहा-"महाराज बच्ची (आरामशोभा) की माँ (ब्राह्मणी) ने निवेदन किया है कि "इस भेंट को मैंने जैसे-तैसे मात -प्रेम-वश भेजा है। अतः इसे पुत्री ही खावे, अन्य दूसरे के लिए न दिया जावे, जिससे कि राजदरबारियों के सम्मुख मैं उपहास को पात्र न बन । मेरे इस कथन का कोई बुरा भी न माने।" [२४] यह सुनकर राजा ने देवी आरामशोभा के मुखकमल की ओर देखा । उसने भी दासी के सिर पर उस कलश को रखकर उसे अपने महल में भेज दिया । राजा ने ब्राह्मण को स्वर्ण, रत्न एवं वस्त्र के दान से सन्तुष्ट किया और स्वयं वह ( राजा) अपने स्थान से उठकर देवी आरामशोभा के भवन में गया। वहाँ सुखासन पर बैठ गया। देवी आरामशोभा ने ( उसी समय राजा से ) कहा__गाथा १४-"प्रियतम, मेरे ऊपर कृपा करके स्वयं अपने नेत्रों से इस मुद्रित कलश को देखिए। क्योंकि यह अवर्णनीय है।" यह सुनकर राजा ने भी उत्तर में कहा-- ___गाथा १५- "हे प्रिये, मेरे हृदय की रानी, अपने हृदय में किसी भी प्रकार का कुविकल्प मत करो। वही ( कलश ) हमारे लिए प्रमाण है। अतः अब उस मुद्रित कलश का मुख खोलो।" [२५] इसके बाद उस घड़े को जब आरामशोभा ने खोला तब उसमें से मनुष्य-लोक के लिए दुर्लभ दिव्य-सुगन्ध निकली, जिससे समस्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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