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________________ आरामशोभा-कथा द्वारा कहे जाने पर उसने उत्तर दिया-“मेरी गायें दूर भाग गई हैं।" यह सुनकर मन्त्री ने अपने घुड़सवारों को भेजकर गायों को लौटवा दिया। विद्युत्प्रभा को भी बगीचे सहित राजा के समीप लाया गया। राजा भी उसे सर्वांग स्वस्थ एवं सुन्दर देखकर तथा उसे "कुमारी है" ऐसा निश्चय कर अनुराग सहित (साभिप्राय) मन्त्री की तरफ देखने लगा । मन्त्री भी राजा के मन का अभिप्राय जानकर विद्युत्प्रभा से बोला गाथा ११-हे विद्यत्प्रभा ! नरेश्वर एवं देवों के दैदीप्यमान मुकुट जिसके आगे क्रम-क्रम से नम्रीभूत रहा करते हैं तथा समस्त राज्यश्री ने जिसका वरण किया है, उस श्रेष्ठ वर का वरण कर सुख भोग करो।" [१६] तब विद्युत्प्रभा ने कहा- "इसका उत्तर देना मेरे अधिकार में नहीं है, किन्तु वह मेरे माता-पिता के ही अधीन है।" तब मन्त्री ने कहा-"तुम्हारे पिता कौन हैं एवं वे कहाँ निवास करते हैं ?" विद्युत्प्रभा ने उत्तर में कहा- "इसी ग्राम में अग्निशर्मा नामक ब्राह्मणपरिवार निवास करता है (मैं उसी कुल की कन्या हूँ)।" तब मन्त्री को उसके पास जाने के लिए राजा ने आदेश दिया। मन्त्री भी उस बलासक नामक ग्राम में जाकर उस ब्राह्मण-परिवार के घर पहुंचा। ब्राह्मण ने भी स्वागत-वचन आदि के बाद आसन पर बैठाकर उससे कहा-"जो मेरे करने योग्य हो कृपा कर मुझे आदेश दीजिये।" [१७] मन्त्री ने कहा- "आपकी यदि कोई कन्या हो, तो उसका विवाह हमारे स्वामी (राजा) के साथ कर दीजिये।" ब्राह्मण ने भी “दे दी" कह कर उसका वचन स्वीकार कर लिया और कहा कि “जब हमारा जीवन भी आपके स्वामी के अधिकार में है तब फिर कन्या की तो बात ही क्या ?" यह सुनकर मन्त्री ने कहा-"तुम हमारे स्वामी के पास चलो।" वह ब्राह्मण भी मन्त्री की बात मानकर राजा के समीप पहुँचा और उसे आशीर्वचन दिया । मन्त्री ने समस्त समाचार राजा से कह सुनाया। तब राजा ने स्वयं अपने हाथ से आसन देकर ब्राह्मण को उस पर बैठाया। राजा को समय का विलम्ब सहनीय नहीं हुआ और उसने गान्धर्व-विवाह पद्धति से उसकी कन्या के साथ परिणय कर लिया एवं पूर्वागत नाम में परिवर्तन कर उसका (नया) नाम "आरामशोभा" रख दिया। ब्राह्मण के लिए भी बारह गाँव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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