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________________ १५२ प्राकृत भारती जाती। वह बगीचा भी उसके पीछे-पीछे चल देता। इस क्रम से उसने कई दिन व्यतीत कर दिये । [१३] किसी एक दिन मध्याह्न के समय जब वह सुख की नींद सो रही थी, तभी जितशत्रु नामक पाटलिपुत्र नरेश अपनी चतुरंगिणी सेना सहित विजय-यात्रा से लौटते समय वहाँ आया, उस बगीचे की रमणीयता से आकर्षित होकर उसने अपने स्कन्धावार का पड़ाव वहीं डालने के लिए मन्त्री को आदेश दिया और अपना आसन एक सुन्दर आम्रवृक्ष के नीचे जमाकर उस पर स्वयं बैठ गया। उसकी सेना भी चारों दिशाओं में ठहर गयी । और भी (कहा भी गया है) गाथा ९-चंचल तरंगो के समान वल्ख जाति के घोड़े पलानों सहित अल्पकाल में ही वृक्षों की मूल वाली शाखाओं से चारों ओर से बाँध दिए गये। गाथा १०-मदोन्मत्त हाथियों को पंक्तिबद्ध रूप में वक्षों के बड़े-बड़े ठुठो से बाँध दिया गया। इसी प्रकार बैल, ऊँट आदि वाहनों को भी क्रमशः बाँध दिया गया । [१४] उसी समय सेना के कोलाहल से विद्युत्प्रभा की नींद टूट गई और वह उठ बैठी । ऊँट आदि के देखने से उठकर दूर भागती हुई गायों को देखकर, उन्हें वापिस करने हेतु वह राजा आदि को देखती हुई भी तेज दौड़ने लगी। उसके साथ, हाथी-घोड़े आदि के साथ वह बगीचा भी चलने लगा। तब सन्त्रस्त हुआ वह राजा भी परिजनों सहित उठा, और-"अरे यह क्या आश्चर्य है !" इस प्रकार मन्त्री से पूछने लगा। उसने भी दोनों हाथ जोड़कर राजा से निवेदन किया कि-'हे देव, मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्थान से सोकर उठी हुई, दोनों हाथों से आँखें मीड़ती हुई जो यह बाला दौड़ी जा रही है, इसी के साथ यह बगीचा भी दौड़ रहा है। अतः इसी के प्रभाव से इस बगीचे के दौड़ने की सम्भावना की जा सकती है। इस कन्या के देवांगना होने की संभावना नहीं की जा सकती, क्योंकि नेत्रों की पलकों के उठने-गिरने से निश्चय ही यह मानुषी है। [१५] तब राजा ने कहा- "मंत्रिराज, इसे हमारे समीप ले आओ।” मन्त्री ने भी दौड़कर उसे आवाज दी। विद्युत्प्रभा भी उसकी आवाज सुनकर ..बगीचे सहित वहाँ ठहर गई । तत्पश्चात् “यहाँ आओ” ऐसा मन्त्री के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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