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लीलावती कथा
४२. उसे वैसा सुनकर कौतुहल कवि ने कहा-'हे चंचल बालमृग की
तरह आँखों वाली ! यदि ऐसा है तो अच्छी सन्धियों से युक्त
कथावस्तु को सुनो।' कथा प्रारम्भ : ४३. चारों समुद्ररूपी गोलाकार करधनी से बंधी हई विशाल नितम्ब की
शोभा वाली, शेष नागराज के अंक में सभी अंगों को छिपाए हुए
तीनों लोकों में अच्छी तरह स्थित४४. प्रलयकाल में वराह से उद्धार की गयी, सुख-सम्पत्ति एवं महान्
वस्तुओं से युक्त नाना प्रकार के रत्न से अलंकृत भगवती पृथ्वी में४५. धान्य-सम्पत्ति से पूर्ण, खेतीहर प्रसन्न नागरिकों से युक्त और
सु-व्यवस्थित गाँवों के गोधन के रंभाने की आवाज से दिशाओं को
गुंजाने वाला४६. अतिसुखद पेय, दुकानों एवं बाजारों से युक्त चर्चरी की आवाज
और सुन्दरियों के समूह को सुशोभित ऐसा सम्पूर्ण सुखकर निवास
आसव नामक विख्यात जिला था। ४७. वह जो प्रदेश है, वह कृतयुग से जुड़ा हुआ, धर्म के निवास स्थान
की तरह, ब्रह्मा का मानों शिक्षा-स्थान और पुण्य का आवास था। ४८. उस प्रदेश में मानों पुण्य का शासन था, सुख-समूह का मानों वह
जन्म-स्थल था, वह आचारण का आदर्श था, तथा गुणों के लिए • अच्छे क्षेत्र ( खेत) की तरह था। ४९. उस नगर में कोमल घास से संतुष्ट गोधन एवं गोधन से आनंदित
समूह था । सर्वोत्तम बाँस समूह में वीणा की पूर्ण व्याप्त गीत की
आवाज से दिशाएँ गंजती रहती थीं। ५०. युवतीपक्ष-अति उन्नत और भारी पयोधरवाली, कोमल मृणाल
की तरह बाँहों वाली तथा सदा मधुर बोलनेवाली युवतियाँ नदियों की तरह थीं। नदीपक्ष-दूर तक फैली हुई, गहरे जल से भरी हुई, कोमल मृणाल रंद्र को बहाने वाली तथा मीठे पानी से युक्त नदियों की तरह मानों
वहाँ की युवतियाँ थीं। ५१. जिस जनपद में मनोहर गीतों की आवाज हरिणों (मगों) को हरण
करने वाली पामर वधुओं के द्वारा अपने खेत की फसलें रक्षित की जाती थीं, वह प्रदेश सुस्थित रहे।
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