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________________ १३४ प्राकृत भारती ३१. हे प्रिय ! प्रफुल्लित सुगन्ध युक्त नील कमल के आमोद वाले चन्द्रमा के उजले कर्णाभूषण वाले एवं निर्मल ताराओं के प्रकाश जैसी आँखों वाले इस रात्रि के मुख को चन्द्रमा मानों पी रहा है। ३२. अत्यन्त रमणीय रात्रि ( है), निर्मल शरद ऋतु (है), तुम मेरे अधीन (हो ) और परिजन अनुकूल ( हैं ) अतः मैं ऐसा मानता हूँ कि ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो मेरे पास नहीं है। कथा-स्वरूप : ३३. 'हे स्वामी ! सायंकाल के विनोद के लिए, मदयुक्त, सुखकारी (आनंदजनक ), मनोहर रचना ( कथन ), हम महिला जन के मनोज्ञ, रसयुक्त, कोई भी अपूर्व कथा कहिए।' ३४. ( तब ) सुन्दर मुख कमल से उत्पन्न विशेषता वाली के उस वचन को सुनकर उसने ( कौतूहल ने ) कहा कि हे नीलकमलों जैसे नेत्रों वाली ! यहाँ पर कवियों ने तीन प्रकार की कथा कही है। ३५. जैसे दिव्या, दिव्यमानुषी और मानुषी। उसमें भी वास्तव में सर्वप्रथम कवियों ने क्या लक्षण किया ? वह इस प्रकार है३६. दूसरी ( कथा ) श्रेष्ठ महाकवियों के द्वारा संस्कृत प्राकृत की संकीर्ण ( मिश्रित ) विद्यावाली, अच्छे वर्गों में रची गई अनेक अच्छी कथाएँ सुनी जाती हैं। ३७. हे मृगाक्षि ! उनके ( महाकवियों के ) बीच में हम जैसे अज्ञानियों के द्वारा जो कथाएँ कही जाती हैं, वे कथाएँ लोक में गुणोत्कर्ष को नहीं पा सकेंगी। ३८. हे सुन्दरी ! शब्द-शास्त्र के ज्ञान विशेष से रहित मेरा उनसे क्यों उपहास करवाती हो ? क्योंकि उनके सामने मैं बोलने में भी समर्थ नहीं हूँ, फिर विस्तृत कथाबंध कहने की तो बात ही कठिन है। ३९. और तब प्रियतमा ने कहा-'हे प्रियतम ! हमारे जैसे लोगों के लिए उस शब्दशास्त्र से क्या प्रयोजन, जिसके द्वारा सुभाषित मार्ग खण्डित हो। ४०. ( अतः हे प्रिय !) बिना विशेष प्रयत्न के हृदय से अर्थ स्पष्ट होता है, वही शब्द सदैव श्रेष्ठ है । हमारे लिए लक्षण से क्या प्रयोजन ? ४१. इस तरह मुग्ध युवती की तरह मनोहर, देशी शब्दों से युक्त एवं उत्तम लक्षणों वाली कोई दिव्यमानुषी कथा प्राकृत भाषा में कहिए।' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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