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कहाणय अट्ठगं
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जइ देसओ वि परिवालियस्स सीलस्स फलमिणं पत्तं । ता कुणह पयत्तं सव्वओ वि परिपालणे तस्स ॥४६।। तं सव्व-संग-परिहाररूव-दिक्खाइ होइ गहणेणं ।। तेहिं भणिय पसायं काउ तं देहि अम्हाणं ॥४७॥ तो दिक्खियाइं दुन्नि वि गुरुणा संवेग-परिगय, मणाइ।। पालति जावजीवं अकलंक सचओ सोलं ॥४८॥ मरिऊण बंभलोयं गयाई भुत्तूण तत्थ दिव्व-सुहं । तत्तो चुयाई दुन्नि वि निव्वाण पयंमि पत्ताई ॥४९॥
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