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एत्यंतरे लोएहिं भणियं - 'छुहाइप्रो जरगो, उस्सूरं च बट्टइ ताकि चरावेह ?' चेल्लिएरण भरिणयं- 'मा रोल करह, जा मे गुरु निद्द लहइ त्ति ।' हि भरियं - 'को सुवरणकालो ?' चेल्लिएण भरिणयं - 'तुम्ह भोयरणट्ठा [विणोवलद्धमोयग वक्खारिगाए भुल्लो, पुणो तदंसणत्थं सुबइ' त्ति ।
एवं सो- 'अहो मुरुक्खा एए' त्ति दिन करतालो हसमारगो गो गोसभवणेसु । ता न सुत्रिरणयं दिठ्ठ पारमत्थियं ति । *
1. शब्दार्थ :
बक्खारिग
साह
बला
रोलं
करताल
-
=
!. लघुत्तरात्मक प्रश्न :
अभ्यास
- स्वप्न
कोठा सुविरण कना चेल्लग चेला
बलपूर्वक भायरण
= वर्तन
शोरगुल
उस्सूर
ताली
एए
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कृत गद्य-सोपान
-
प्रश्न का उत्तर एक वाक्य में लिखिए:
1. इस पाठ का मूल उद्धेश्य क्या है ?
2. गांव के लोगों के लिए भोजन-सामग्री कहाँ थी ?
सन्ध्या
ये लोग
3. गांव के लोगों के आ जाने पर मठ का गुरु क्यों सो गया ?
4. असलियत जानने पर लोगों ने क्या कहा ?
विउद्ध
उक्कुरुडिया:
सुव
मुरुक्त्वा
दिट्ठ
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-
=
रयणचूडरायचरियं (सं० - विजयकुमुदसूरि ), खम्भात, 1942, पत्र 28 |
जागना
घूरा
सोना
मूरख देखा हुआ
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