________________
पाठ 21 : जहा गुरु तहा सीसो
पाठ-परिचय:
नेमिचन्द्रसूरि ने उत्तराध्ययनसुखबोधाटीका आदि ग्रन्थों के अतिरिक्त लगभग 11 वीं शताब्दी में चन्द्रावती नगरी (राज.) में रयणचूडरायवरियं नामक चरितग्रन्थ भी लिखा है । इस ग्रन्थ में रत्नचूड राजा के पूर्व जन्म एवं जीवन-चरित आदि का वर्णन है। प्रसंगवश अन्य लौकिक कथाए भी हैं।
प्रस्तुत कथा स्वप्न की सत्यता का निराकरण करने के लिए कही गयी है। एक मठ के आचार्य ने स्वप्न में मठ के कमरों को मिष्ठान से भरा हुआ देखा । नींद खुलने पर उन्होंने यह बात अपने शिष्य से कही। उस शिष्य ने स्वप्न के मिष्ठान्न को खिलाने के लिए मारे गांव का निमन्त्रण कर दिया । अन्त में लोगों के सामने उन्हें अपनी मूर्खता पर अपमानित होना पड़ा।
__ एगम्मि गामे बहु-वक्खारिगे मढे एग-सीसेण संजुप्रो परमायरियो वसइ । अन्नया तेण रयणीए सुविणे दिट्ठा-मोयगपडिपुन्ना वक्खारिगा। विउद्धण संहरिसं साहियं चेल्लगस्स । तेण भरिणयं- 'जइ एवं ता निमं तेमो अज्ज गामं । भुत्तपुव्वं बहुसो गामगिहेसु ।'
एवं ति पडिवन गंतूण उक्कुरुडियाए निमंतिम्रो सठक्कुरो गामो चिल्लगेण । 'कत्थ तुम्ह भोयरणसामग्गि, त्ति ? अणिच्छन्तो वि धम्माणुभावेण सव्वं भविस्सइ' त्ति बला मन्नावियो । काराविमो भोयरणमंडवो. ठावियानो आसणपंतीयो। उचियवेलाए समागमो गामलोपो। उवविट्ठो पासणेस दिनाइ भायणाई।
एत्थंतरे पविट्टो मोयगनिमित्तम्भन्तरे परसमायरियो। जाव न किंचि तत्थ पेच्छइ । तमो 'अदन्नचित्तो भुल्लो अहं मोयगवक्खारियाए, तो पुणो वि तइंसणत्थं सुवामि । तं पुरण लोगरोल निवारेहि' त्ति भरिणऊण चेल्लयं सो पसुत्तो।
82
प्राकृत गद्य-सोपान
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org