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पाठ-परिचय :
प्राकृत भाषा में 54 महापुरुषों के जीवन को प्रस्तुत करने के लिए 9 ब शताब्दी (सन 868 ) के विद्वान् शीलांकाचार्य (विमलमति ) ने चउप्पन - महापुरिसचरि नामक एक विशालकाय ग्रन्थ लिखा है । इसमें तीर्थंकरों, राम, कृष्ण, भरत आ के जीवन-चरितों का वर्णन है । किन्तु इसमें प्रसंगवश कई लौकिक कथाएं भी प्रस्तु की गयी हैं ।
पाठ 19 : णरवडणो ववहारो
प्रस्तुत कथा एक मुनिचन्द साधु की है । बलदेव के पूछने पर मुनिचन अ ने गृहस्थ जीवन का वर्णन करता है, जिसमें वह गुणधर्म नाम का राजा था गुणधर्म ने अपने गुरु भैरवाचार्य की मन्त्रसाधना में रक्षा की थी । प्रस्तुत गद्यांश रे गुरु-शिष्य के सौजन्यपूर्ण व्यवहार का ज्ञान होता है ।
वीय दिवसे पच्चूसे कयसयलकर गिज्जो गम्रो भइरवायरियदसरथ उज्जाणं । दिट्ठो य वग्धकतीए उवविट्ठो भइरवायरियो । अब्भुट्ठियो य अह ते । पडि य अहं चलणेसु । श्रासीसं दाऊरण मियकत्ति दंसिकरण भरिणयं तेरा जहा - 'उवविससु' ति । मए भणियं- 'भयनं ! ग जुत्तमेवं प्रवर
रवतिसमाणतरण मं खलीकाउं । अवि य रंग तुम्ह एस दोसो, एस इमीए एहि गरवइ सय सेवियाए रायलच्छीए दोसो त्ति, जेरण भयवन्तो वि सीसजणे ममम्मि यि श्रासरणप्पयारोणं एवं ववहरन्ति । भयगं ! तुम्हे मज्भ दूरट्टिया वि गुरवो', श्रहं पुण निययपुरिसुत्तरीए उवविट्ठो ।
थेववेलाए भणिउमादत्तो- 'भयवं ! कयत्थो सो देसो णयरे गाम पएसो वा जस्थ तुम्हारिसा पसंगेणावि आगच्छति किमंग पुण उद्दिसिउत्ति, ता अग्गहि श्रहं तुम्हागमणेन ।'
जडहारिणा भरिणयं - 'गिरीहा वि गुरणसंदाणिया कुरणंति पक्खवाय
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प्राकृत गद्य-सोपान
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