________________
या महुर-वयरण - विनय-सीलसमा [ रा ] हरण - पमुहगुरण - रंजिएग सेट्ठिा गुण निchori 'चंदरणबाल' त्ति बीयं नामं पइट्ठियं । एवं सा तत्थ जहा नियमंदिरे तहा सुहेरण कालं गमेइ । तग्गुरणावज्जियमाणसो नयरलोगो वितं पसंसेइ | "अहो ! सीलं । अहो ! सुसीलत्तणं । अहो ! श्रमय-महुरं वयणं । कि बहुरा ? सव्वमुरमई एसा विहिरणा विरिणम्मिया ।" एवं सव्वत्थ - पत्तपसंसा तरुणमरण - हरिण -हरण- वागुरोवमं जोव्वरणमारुतीए पत्तो गिम्हकालो चंद बालाए ।
तो जहा जोव्वणं समारुहइ पसंसिज्जइ य घर-नयर - लोएण, तहा समुप्पण्ण-मच्छरा सयलारणत्थमूला मूला दूमिज्जइ । निय-चित्तेण चिते - "अहो ! एसा मह अभोयरा विसूइया, निन्निबंधरा विसकंदलि व्व पवड्ढमारणा सव्वाणत्थनिबंधरणा, किंपाग - फल- भक्खरणं व विरसावसारणा, लहु-वाहि oa उब्वेक्खिया दुक्खदायगा भविस्सइ । एवं कुवियप्प-सय- संकुलाए वच्चइ कालो मूलाए ।
या मज्झण समए एगागी चेव सभत्ररणमागश्रो सेट्ठी, नत्थि घरे को विपरियण-मज्झायो । मूला वि धवलहरोवरि मत्तालंबगया चिट्टइ । विरणीयया करवयं गहाय निग्गया चंदणबाला । दिन्नमभुक्खणं सज्जीकयमासरणं, चलणसोयरागत्थमुवट्टिया । निवारियां सेट्ठिणा तह वि धोवंतीए पविलुलि दीहर - कसिण-कुडिल- सण्हसिरिगद्ध-कु तल- कलाओ मणागमप्पत्तो चेव भूमीए 'मा पंके पडउ' त्ति लीला लट्ठीए धरेऊण पुट्टिए आरोविश्रो सेट्ठिा बद्धो य सिणेहसारं ।
मूला वि उल्लोयरण - गया तं पेच्छिऊरण दूमिया चित्तेण । चितिउ पवत्ता - "अहो ! विनट्ठे । परूढ पण सेट्ठी दीसइ । पडिवण्ण- दुहिया य एसा । न नज्जइ कज्ज परिणामो । जइ कह वि घरिरणी कीरइ, तोहं घरसामिणी न हवामि । एयमेत्थ पत्तयालं - तरुणी चेव वाही छिज्जइ । को नाम सयन्नो नहच्छेज्जं [..... .. ] क रेज्जा ? ।" एवमरणप्प - कुवियप्पिधरण-संवुfara को वाणलाए सेट्ठिम्मि निग्गए, व्हावियं सद्दाविय बोड़ाविया चंदरणबाला
78
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
प्राकृत गद्य-सोपान
www.jainelibrary.org