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________________ पाठ 13 : कयग्घा वायसा पाठ-परिचय : प्राकृत का कथासाहित्य विशाल है। उसमें कई स्वतन्त्र कथा-ग्रन्थ लिखे गये हैं। उनमें संघदासपरिण द्वारा 2-3 री शताब्दी में लिखे गये वसुदेवहिण्डी नामक अन्य में श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमरण-वृतान्त का वर्णन है । उस प्रसग में इसमें कई कथाएं प्रस्तुत की गयी हैं। प्रस्तुत कथा में कृतघ्न कौओं की मनोवृत्ति को उजागर किया गया है। अकाल पड़ जाने से ये कौए अपने भानजे कापंजल के यहाँ चले जाते हैं, जहाँ उनको भोजन आदि मिलने लगता है। किन्तु अकाल समाप्त होने पर ये कौए बड़ी मुश्किल से अपने देश को लौटते हैं। और जाते समय यह कह जाते हैं कि हम इसलिए वापिस जा रहे हैं क्योंकि हमसे काजल का सौभाग्य नहीं देखा जाता है। . इनो य किर अतीते काले दुवालमवरसिमो दुब्भिक्खो पासि । तत्व बायसा मेलयं काऊरणं अण्णोण्णं भांति-'कि कायव्बमम्हेहिं ? वड्डो छुहमारो उवट्टिो, नस्थि जरणवएसु वायसपिंडयानो, अण्णं वा तारिसं किंचि न लब्भइ उज्झरणधम्मियं, कहियं वच्चामो ?' ति । तत्थ वुडढवायसेहिं भरिणयं-समुद्दतडं वच्चामो, तत्थ कायंजला अम्हं भायणेज्जा भवंति, ते अम्हं समुद्दामो भोयणं लाऊरण दाहिति । अण्णहा नत्थि जीवणोपायो' संपहारेत्ता गया समुद्दतडं । ततो तुदा कायंजलो, सागयाभागएण य सम्माणिया, कयं च तेसिं पाहण्रणयं । एवं ततो तत्थ कायंजली भोयरणं देति । वायसा तत्थ सुहेणं कालं गमेंति । ____तत्तो वत्त बारससंवच्छरिए दुब्भिक्खे जणवएस सुभिक्खं जायं । ततो तेहिं वायसेहिं संपहारेत्ता वायससंघाडो-'जरणवयं पलोएह' त्ति पेसियो। 'जइ सुभिक्खं भविस्सइ तो गमिस्सामो' । प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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