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पाठ 12 : धुत्तो सागडिओ च
पाठ-परिचय:
जिनदासगरिण महत्तर ने दशवकालिकचूरिण नामक ग्रन्थ की रचना की है। इसमें दशवकालिक के विषय को स्पष्ट किया गया है । उस प्रसंग में कई दृष्टान्त और कथाए इस चूरिण-ग्रन्थ में दी गयी हैं।
प्रस्तुत कथा एक लौकिक कथा है । इसमें एक ग्रामीण किसान को शहर का एक धूर्त दलाल अपनी बुद्धि से संकट में डाल देता है। उसकी गाड़ी की ककड़ियां जूठी कर शर्त के अनुसार उससे नगर के दरबाजे से न निकलने वाली (इतना बड़ा) लड्ड मांगता है । तब वह गाड़ीवान एक बुद्धिमान् की मदद लेकर उस धूर्त की शर्त पूरी करता है।
एगो मणूसो त उसारणं भरिएण सगडेरण नगरं पविसइ । सो पविसंतो धुत्त ण भण्णइ- 'जो य तउसाणं सगडं खाएज्जा तस्स तुमं किं देसि ?' ताहे सागडिएण सो धुत्तो भणियो- 'तस्स अहं तं मोदगं देमि जो नगरद्दारेणं न निप्फिडइ ।'
धुत्तण भण्णइ- 'ताहे एयं त उससगडं खायामि । तुमं पुरण मोदगं देज्जासि जो नगरदारेण न निस्सरइ ।' पच्छा सागडिएण अब्भुवगए धुत्तण सक्खिरणो कया । सगडं अधि?तो, तेसिं तउसाणं एक्केक्काउ खंडं खंडं प्रवणेता पच्छा तं सागडियं मोदगं मग्गइ ।
ताहे सागडियो भरणइ-'इमे तउसा ना खइत्ता तुमे ।' धुत्त रण भरणइ'जइ न खइया तउसे अग्यवेहि तुमं ।' अग्धविएसु कइया आगया। पासन्ति खंडिया त उसा । ताहे कइया भरणंति-'को एते खतिए किणत्ति ?' । ततो कारणे ववहारे जानो। खत्तिय ति जितो सागडिनो। ताहे धुत्तेण मोदगं मग्गिज्जइ। अच्चइनो सागडियो। जुत्तिकए अोलग्गिता । ते
प्राकृत गद्य-सोपान
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